रामचरित मानस में छंद योजना


हिन्दी साहित्य के पूर्व-मध्यकाल की सगुण रामभक्ति काव्यधारा के प्रतिनिधि कवि गोस्वामी तुलसीदास है, वैसे तो तुलसीदास कृत रचनाओं में बारह (12) ग्रंथ प्रमाणिक माने गए है जिसमें – (1) रामलाल नहछू (3) वैराग्य संदीपनी (3) रामाज्ञा प्रश्नावली (4) गीतावली (5) कवितावली (6) बरवै रामायण (7) कृष्ण गीतावली (8) विनय पत्रिका (9) पार्वती मंगल (10) जानकी मंगल (11) दोहावली (12) रामचरितमानस जिसमें हनुमान बाहुल भी सम्मिलित है लेकिन इन ग्रंथों में से एक ग्रंथ रामचरितमानस जो कि सात खण्डों में विभाजित है । यह रामकथा का एक अनुपम महाकाव्य है ।

इस प्रकार अब हम अपने इस परिपत्र में रामचरितमानस में बताए गए छन्दो के बारे में विस्तृत चर्चा को देखेगें ।

रामचरितमानस भारतीय संस्कृति के वैश्विक परिप्रेक्ष्य में अपना उल्लेखनीय स्थान रखता है । रामचरितमानस जो कि 10902 पदो में विभाजित है । यहाँ वर्णित 18 संस्कृत और प्राकृत छंदो में रचित है । छंदो का ज्ञान त्रुटिरहित पाठ और गान में सहायक है । मात्राओं और यतियो का सूक्ष्म गान ग्रंथो के पाठ और ज्ञान में सहायक है । एक भी मात्रा या यति में गड़बड़ी होने से लय टूट जाती है और मानस के वरिष्ट गायक के साथ भी यह कई बार होता है जैसे –
उदा. जो फल चहिए सुरतरूहि सो बरबस बबूरहि ला गई ।

शिवविवाह एलबम में अपने गान्धर्व स्वर में इस पंक्ति को प्रथम बार गाते हुए पण्डित छन्लूलाल मिश्र की लय एक मात्रा से टूटती है । वे चाहिए पद को तीन मात्राओं के बजाय चार मात्राओ में गाते ही रामचरितमानस के मंजे हुए गायक होने के कारण वे इस त्रुटि को तुरंत जान लेते है और इस पंक्ति को पुनः गाते है ।

रामचरितमानस प्राकृत और संस्कृत दोनों में रचित है । इसमें तुलसीदासजी ने छन्दो को बड़ी ही सरलता से निरूपित किया है । जैसे, हिन्दी में हरिगीतिका, चौपया, त्रिभड्डी, तोमर, सोरठा, दोहा आदि छंद है तो संस्कृत में अनुष्टुप, चोपाई, शार्दुलविक्रीडित, वसन्ततिलभा, वंशस्थ आदि छंद है । रामचरित मानस में मंगलाचरण के संस्कृत श्लोको के बाद विश्राम के ले दोहा अथवा सोरठा आता है । उसके बाद चौपाई का प्रवाह बहता है । प्रयुक्त छंद की दृष्टि से सर्वाधिक प्रयोग चौपाई का उसके बाद दोहा-सोरठा का तदुपरांत हरिगीतिका का हुआ है । अब हम रामचरितमानस के इन छन्दो को विस्तार से देखेंगे ।

रामचरितमानस (प्राकृत) में प्रयुक्त छंद :>

(1) सोरठा :

यह मानस में प्राकृत में पहला छंद ही यह मात्रिक छंद है । इसमें चार चरणों में 11-13, 11-13 मात्राएँ होती है । हर चरण के अन्त में यति होता है पहले और तीसरे चरण के अन्त में तुक होता है और तुक में गुरु-लघु का क्रम रहता है जैसे –

जेहि सुमिरत सिधि होइ गन नायक कखिर बदन ।
करउ अनुग्रह सोई बुद्धि रासि सुभ गन सदन ।।

प्रस्तुत उदाहरण बालकाण्ड के मङ्गाचरण का आठवाँ पद्य है । दोहा में 13-11, 13-11 का क्रम रहता है और तुक दूसरे और चौथे चरण में बनता है – बाली सब सोरठे जैसा ही है । वैसे यहाँ भी दूसरे और चौथे चरण में तुक है लेकिन यह दोहा नही है क्योंकि बदन और सदन में तुक में गुरु-लघु का क्रम नही है और दूसरे पंक्ति में 13 मात्राओं के बाद यति नही है । “करउ अनुग्रह सोइ” में “बुद्धि” जोड़ने से 11 से सीधे 14 मात्राएँ हो जायेंगे और क्रम 14-10 हो जायेगा । मानस में 87 सोरठे है ।

(2) चौपाई :

इस मत्रिक छंद के दो चरण होते है । प्रत्येक चरण में 16-16 मात्राएँ होती है । हर चरण में 8 मात्राओं के बाद यति आता है । प्रथम और द्वितीय तरण के अंत में तुक आता है । यह मानस का प्रमुख छन्द है ।

जहाँ सुमति तहँ संपत्ति नाना ।
जहाँ कुमति तहँ विपति निदाना ।।

मानस में कुल 9388 चौपाइयाँ है जिनकी उपमा इस अर्धली में गोस्वामी जी ने मानस सरोवर के घने कमल के पत्त्तो से दी है –
पुरइनि सघन चारू चौपाई ।

(3) दोहा :

यह भी एक मात्रिक छन्द है इसमें चार चरणों में 13-11, 13-11 मात्राएँ होती है । हर चरण के अन्त में यति तथा दूसरे एवं चौथे चरण के अन्त में तुक आता है और तुक में गुरू-लघु का क्रम रहता है। उदा.

जथा सुअंजन अंजि दृग साधल सिद्ध सुजान ।
कौतुक देखत सैल बन भूतल भूरि निधान ।।

प्रस्तुत दोहा बालकाण्ड में से लिया गया है रामचरितमानस में 1172 दोहे है । यह सोरटा का विपरीत है । इसमें हम देख सकते है कि अन्त में तुक ही और तुक में गुरू-लघु का क्रम ‘सुजान’ और ‘निधान’ में अन्त के दो वर्ण गुरु और लघु है ।

(4) हरिगीतिका :

रामचरित मानस में छन्दो की संख्या 208 है जिसमें से 139 हरिगीतिका छन्द है । यह छन्द गाने में अत्यन्त मनोहर है । इसमें चार चरण होते है । प्रत्येक चरण में 28 मात्राएँ होती है जो कि 7-7-7-7- (2-2-1-2, 2-2-1-2, 2-2-1-, 2-2-1-2) के क्रम में होती है । प्रत्येक सातवीं मात्रा के बाद यति आता है । पहले और दूसरे चरण के अन्त में तुक होता है । तुक में क्रम लघु-गुरु होता है । मानस में हरिगीतिका चौपाइयों और दोहा । सोरठा के बीच आता है ।

बन बाग उपबन बाटिका सर कूप बापी सो हहीं ।
2212   2212   2,      212   22   12    = 28
16            12
नर नाग सुर गंधर्व कन्या रूप मुनि मन मोहहीं ।।
2212   2212    2,      212   22   12   = 28

प्रस्तुत छन्द रामचरितमानस के सुंदरकांड से है । इन छंदो में बहुधा 2212 का मात्रा क्रम है । किन्तु यह आवश्यक नही है । यह क्रम 2122, 1222 या 221 भी हो सकता है । मगर ऐसा करने पर लय बाधित होता है । प्रवाह हेतु 2122 या 2212 ही उपर्युक्त है । हरिगीतिका छंद को (2+3+2) के रूप में भी लिखा जा सकता है । 3 के स्थान पर 1-2 या 2-1 ले सकते है । जैसे –

निज गिरा पावन लरन लारन, राम जस तुलसी लह्यो ।
(यति 16-12 पर, 5 वी मात्रा दीर्घ, 12वी, 19 वी, 26 वी मात्राएँ लघु) = 28

हरिहीतिका छन्द में 26वी मात्रा लघु तथा सत्ताइसवी एवं अठ्ठाइसवी मात्रा गुरु अनिवार्य है । मानस में कुल 139 हरिगीतिका छन्द है । जो कि 47 बालकाण्ड में, 13 अयोध्याकाण्ड में, 14 अरण्यकाण्ड में, 3 किहिकन्धाकाण्ड, 6 सुन्दरकाण्ड, 38 युद्धकाण्ड में और 18 उत्तरकाण्ड मे है ।

(5) चौपैया :

चौपैया छन्द में चार चरण होते है । प्रत्येक चरण में 30 मात्राएँ (10-8-12), 10 और 18 मात्राओ के बाद यति, हर चरण के अन्त में गुरु आता है । पहले और दूसरे चरण के अन्त में तुक आता है। मानसजी में बालकाण्ड में 10 चौपैया छन्दो का प्रयोग है ।

पालन सुर धरनी जय असुरारी सिंधुसुता प्रिय लता ।
211    11   112,    11   1122    2112   21    12
10       8        12
जो सहज कृपाला दीनदयाला करउ अनुग्रह सोई ।।
2   111   122    21122   111    1121    22
10       8        12

इस प्रस्तुत छन्द में देवताओं द्वारा श्रीरामचन्द्र की स्तुति का वर्णन किया गया है ।

(6) त्रिभड्डी :

रामचरित मानस में त्रिभड्डी छन्द बालकाण्ड में अहल्योद्धार के प्रकरण में चार त्रिभड्डी छन्द प्रयुक्त हुए है । त्रिभड्डी के एक चरण में 32 मात्राएँ होती है । इसमें एक चरण के अन्दर भी तुक होता है और चरणो के बीच में भी । प्रथम एवं द्वितीय चरणो में और तृतीय और चतुर्थ चरणो में तुक होता है और हर चरण का अन्तिम वर्ण गुरू होता है । 32 मात्राएँ (10-8-14) में विभाजित है । 10 और 8 के बीच यति है और 8 और 14 के बीच यदि है । साथ में 10 मात्राओं के अन्तिम यदि है । साथ में 10 मात्राओं के अन्तिम वर्ण और 8 मात्राओं के अन्तिम वर्ण में भी तुक बनता ही बालकाण्ड के अहल्योद्धार प्रकरण में अहल्या माता को छूकर ऋजु राम ने अहल्या माता के पाप, ताप और शाप को भंड्डा किया । अत गोस्वामी जी की वाणी में सरस्वती जी में त्रिभंड्डी छन्द को प्रकट किया है ।

1    1  1  1    1  1    211    2  11   1  2  11    111   12   1121   12
परसत पद पावन शोक नसावन प्रकट भइ तपपुंज सही =32
211   11211   11   11211   1111   71   11   21   12
देख्त रघुनायक जन सुखदायक सनमुख होइ कर जोरि रही =32

(7) तोमर :

तोमर एक मात्रिक छन्द है जो कि रामचरितमानस में तीन स्थानो पर आठ-आठ (कुल-24) तोमर छन्दो का प्रयोग किया गया है । इसके प्रत्येकचरण में 12 मात्राएँ होती है । पहले और दुसरे चरण के अन्त में तुक होता है और तीसरे और चौथे चरण के अन्त में भी तुक होता है । मानस के अरण्यकाण्ड में खर, दूषण, त्रिशिरा और 14000 राक्षसो की सेना के साथ प्रभू श्री राम का युद्ध तथा उसमें प्रयोग किया तोमर छन्द इस प्रकार है ।

11    12    21    121    1111    11    11    121
तब चले बाने कराल । फुभरत जनु बहु ब्याल
लोपेउ समर श्रीराम । चले बिशिख निशित निकाम ।।
22    111   221    12   111     111    121

इस प्रकार हमने देखा कि रामचरित मानस में छन्दो की संख्या इस प्रकार है –
चौपाई-9388, दोहा-1172, सोरठा-87, श्लोक (अनुष्टुप, शार्दूलविक्रीडित, वसन्ततिलका, वंशस्थ, उपजाति, प्रमाणिका, मालिनी, स्त्रधरा, रथोद्धता, भुजङ्गप्रयात, तोटक) – 47 तथा छन्द में श्रहरिगीतिका, चौपेया, त्रिभड्डी, तोमर) है जिनकी कुल संख्या 208 ही इस प्रकार कुल 10902(चोपाई, दोहा, सोरठा, श्लोक एवं छन्द है ।

श्रीरामचरित मानस का स्थान हिन्दी साहित्य में ही नही जगत के साहित्य में निराला ही सात कांडो में विभाजित रामचरितमानस में कुल मिलाकर लगभग 12800 पंक्तियाँ 1073 लडवको में निबद्ध है । रामचरित मानस के चौपाई छन्द के संदर्भ में आचार्य नंददुलारे वाजपेयी का कहना है कि गोस्वामीजी ने इतना छोटा चौपाई, छंद अपने महाकाव्य के लिए चुना । यह बड़े आश्चर्य की बात है । इससे उनके अत्यंत सरल भावविन्यास का पता चलता है और साथ ही, भाषा पर अत्यंत उच्च श्रेणी का अधिकार सिद्ध होता है । यदि कोई बड़ा छन्द लेकर काव्यरचना की जाती, तो संभव था, भावाभिव्यक्ति उतनी सरल न हो पाती अथवा भाषा भी इतनी चुस्त तथा सुसज्जित न रह जाती ।”

संदर्भ साहित्य :

  1. 1. रामचरितमानस – तुलसी पृ.34/2
  2. 2. रामचरितमानस – युग संदर्भ में डॉ. रामप्यारी दुबे
  3. 3. रचनावली भाग-3, नन्ददुलारे वाजपेयी
  4. 4. कवितावली बालकाण्ड पद-17
  5. 5. अध्यात्मक रामायण, व्यास गीता प्रेस ।

राजपूत रूबी कुमार ले.