SahityasetuISSN: 2249-2372Year-4, Issue-2, Continuous issue-20, March-April 2014 |
भीली लोकाख्यान : ‘रोम सितमाँ नी वार्ता”
गुजरात उत्तर भाग में अरावली की गिरी कन्दराओ में सदियों से आदिवासी प्रजा बसती है. इस आदिवासी प्रजा का सदियों पुराना इतिहास है. वैसे तो यह प्रदेश और प्रजाति पिछड़ी हुई मानी जाती है लेकिन इस प्रजा की साहित्य और कला के प्रति अभिरुचि अनन्य है. गीत, आख्यान, महाकाव्य और कई कथाएँ इन की कंठ परंपरा में संचित है किन्तु आधुनिकता के प्रभाव में यह अनमोल सम्पदा लुप्त होती जा रही है. पुरानी पीढ़ी के माहिती दाता अब गिने चुने बचे है. डा.भगवानदास पटेल ने इस प्रदेश में लगभग दो दशक से ज्यादा समय तक माहिती दाताओं से मिलकर इस धरोहर को रेकोर्ड कर के सुरक्षित कर लिया है और ग्रन्थस्थ भी किया है. डा.भगवानदास पटेल ने भीली राम कथा को ,’रोम सितमाँ नी वार्ता’ नाम से सम्पादित किया है.
प्रकृति के सान्निध्य में जीने वाली यह प्रजा प्रकृति के साथ एकरूप हो कर जीती है. आदिवासी भील समाज का जीवनक्रम ऋतू चक्र के साथ जुडा है. ऋतुचक्र के साथ उत्सव – अनुष्ठान और कथाएँ जुड़े है. सामाजिक प्रसंग या कोई विधि में भी कथा अनिवार्य रूप से जुडी हुई होती है. इसलिए कहा जा सकता है की इनके पर्व, कथाएँ, गीत अन्य समाज के लिए कला के भिन्न स्वरूप हो सकते है किन्तु आदिवासी प्रजा के जीवन का अविभाज्य अंग है; या कहिये की उनका जीवन ही है. वनवासी प्रजा के सामाजिक और धार्मिक प्रसंगों पर गद्य और पद्य दोनों रूप में धुला के पाट के अनुष्ठान के समय यह ‘भजन वार्ता’ लोक समुदाय के बिच कही जाती है. लोकवाद्य वादन और नृत्य इसके साथ जुडा रहेता है. प्रमुख साधू इसका गान करता है और कथा गायन में एवं कथा कहेने में ‘होंकारिया’ नाम से जाने जाते सहायक उनकी सहायता करते है.
‘रोम-सीतमा नी वार्ता’ मूल गेय कथा का रूपांतर है. यह ग्रन्थ मुख्य चार प्रकरण में विभाजित है. प्रथम प्रकरण में भीली रामकथा का सन्दर्भ दिया गया है. जिस स्थान पर कथा का ध्वनि मुद्रण किया गया उस स्थान का भौगोलिक और ऐतिहासिक सन्दर्भ, भजन वार्ता के मुख्य साध का, होंकरिया, एवं सथियो का परिचय दिया गया है. दूसरे प्रकरण में भीली राम कथाका गद्य सार दिया गया है. तीसरे प्रकरण में भीली रामकथा का मूल पाठ दिया गया है. चौथे प्रकरण में ‘रोम-सीतामा नी वार्ता’ के गायन का समय, उसके साथ जुड़े हुए धार्मिक अनुष्ठान, अन्य विधि - विधान की रसप्रद जानकारी दि गई है और भारत के अन्य आदिवासियो की रामायण का तुलनात्मक सन्दर्भ दिया गया है. ग्रन्थ के अंत में भीली बोली के शब्दों का अर्थ दिया गया है जो इस ग्रन्थ के आस्वादन में सहायक होता है.
भारतीय लोकमानस में मुख्यत: वाल्मीकि और तुलसी की ‘रामायण’ का विशेष प्रभाव है. किन्तु वही रामकथा यहाँ भिन्नरूप से कही गई है.
राजा दशरथ और वासुकी नाग एक दूसरे को धोती पहनाकर धर्म के भाई बनते है. एक बार दशरथ वासुकी को मिलने पाताल में जाते है. वासुकी कि प्रिय रानी कैकेयी (ककापदमणी) दशरथ का स्वागत करती है और उनके लिए फल लेने जाने का बहाना करके अपने मित्र ‘बांडिया नाग’ को मिलने चली जाती है. दशरथ अकेलेपन से परेशान होकर बागीचे में जाते है. दशरथ को बागीचे में देखकर कैकेयी को लगता है कि उसे उसकी प्रेमलीला का पता चल गया है और वह वासुकी को सब बता देगा. इस वजह से वह वासुकी को जाकर कहती है कि ‘तुम्हारे मित्र दशरथ ने मुज पर कुद्रष्टि कि है’. वासुकी और दशरथ के बिच विवाद होता है. विवाद टालने के लिए पंचो को बुलाया गया. पंचोने दशरथ को निर्दोष करार दिया. वासुकी ने कैकेयी को कहा कि ‘तुमने पाप किया है इसी कारन दशरथ ही अब तुम्हारा पति होगा’. वासुकी ने कैकेयी को दशरथ के साथ भेज दिया. उस वक्त कैकेयी सगर्भा थी. उसने अपने गर्भ को एक घड़े में बांध कर एक ऋषि को दिया. जब रावण के सिपाही ऋषि के पास कर लेने आये तो ऋषि ने वह घड़ा सिपाहियो को दे दिया और कहा ‘ इस घड़े को नौ मास और नौ दिन के बाद खोलना’. रावण ने निश्चित समय के बाद घड़ा खोला तो अंदर से एक फुल जैसी बच्ची मिली. रावण को कोई संतान नही था इस लिए वह प्रसन्न हुआ. राज ज्योतिषिओने बच्ची का नाम सीता रखा. रावण ने सीता के भविष्य के बारे में पूछा तो जवाब मिला ‘तेरी पुत्री ही तेरी पत्नी होगी’. यह सुन कर रावण ने सीता को गंगा नदी में बहा दिया. राजा जनक गंगाजी में स्नान कर रहे थे और उन्हें सीता मिली.
शिकार पर निकले दशरथ ने अनजाने में श्रवण को तीर मारा और वह मर गया. उसके वृध्ध माता-पिता ने उसे शाप दिया कि ‘तेरी मृत्यु भी तीर लगने से होगी’. श्रवण को लगा हुआ तीर दशरथ ने तोडकर समुद्र में फेंक दिया जो एक मछली खा गइ. मछवारो ने मछली को पकड़ा और उसके पेट में से निकला तीर एक लुहार को बेच दिया. लुहार ने उस तीर से उस्तरा बनाकर हजाम को बेचा.
कैकेयी ने राम – लक्ष्मण को वनवास दिया. दोनों भाई घुमते – घुमते जनकराजा के देश में पहुचे और एक खेत में सो गए. राम अपना धनुष वहीँ भूल गए. आसपास के किसानो ने बल पूर्वक उसे खीचा, बारह बैलो से खीचा लेकिन धनुष हिला भी नहीं. जब सीता किसानों को खाना देने आई तब धनुष्य चुनरी में फंस कर उसके साथ खीचा चला आया. सब को आश्चर्य हुआ. सीता उस धनुष को माणेकचोक में रख कर अपने महल में चली गई.
जब हजाम दशरथ के नाख़ून काट रहा था तो दशरथ कि उंगली कट गई. दशरथ के हाथ पर पट्टी लगायी पर पीड़ा कम नहीं हुई. तब कैकेयी ने उंगली अपने मुह में रखदी. जब वह किसी वजह से बाहर जाती है तो कौशल्या अपने मुह में दशरथ कि उंगली रखती है. लेकिन जब कैकेयी वापस आई तब दशरथ का स्वर्गवास हो गया था.
जनक राजा सभी राजाओ को सीता के स्वयंवर के लिए निमंत्रित करते है तब राम और लक्ष्मण अपना धनुष लेने वहाँ आते है. राजा के सिपाही दोनों भाईओ को भोजन के लिए ले जाते है लेकिन जनक राजा कि सभा मे बैठने की जगह नहीं थी तो दोनों भाइओ को बाहर कचरे के ढेर पर बैठना पडा. सभा में वरमाला लिये घुमता हाथी राम के गले में दो बार वरमाला पहनाता है लेकिन उपस्थित राजाओ ने वह स्वीकार नहीं किया. तब राजा जनक ने कहा कि ‘ जो राजा यह धनुष उठा सकेगा वही मेरा दामाद होगा’. रावण धनुष उठाने गया लेकिन वह धनुष उठा नहीं सका और उसकी उंगली दब गई. रामने आसानी धनुष उठा लिया. रावण अपमानित हुआ और उसने प्रतिज्ञा की कि ‘इसके पास (सीता) ही मेरे घर का चूल्हा जलवाऊंगा’.
राम के वनवास के समय रावण को बारहवा ग्रह उत्तेजित करता है. रावणने दो मुह वाला ‘सत’ का मृग भेजा और मृग ने सीता के बागीचे को उजाड दिया. राम सीता को लक्ष्मण को सोप कर मृग को मारने गये. राम का तीर एक मुर्गी को लगा और उसने लक्ष्मण को आवाज दी. लक्ष्मण आवाज़ दिशा में गए. बाद में रावण साधू वेश में आकर सीता का हरण करके गया.
राम-लक्ष्मण सीता को ढूंढने जंगल में जाते है. चलते चलते दोनों भाई थक गये. लक्ष्मण राम के लिए पेड़ के पत्तो से बने बर्तन में पानी लाते है. पानी देख कर राम कहते है की यह तो किसी के आंसू है. दोनों भाई खोजने निकलते है और वहां हनुमानजी से भेट होती है. हनुमानजी रो रहे थे क्यों कि उनकी पत्नी को कोई वानर उठा के ले गया था. राम हनुमानजी कि पत्नी को वापस ले आते है और हनुमानजी सीता को खोजने लंका जाने को तैयार होते है.
लंका में सीता रावण को कहती है की ‘मुझे सवा महिना ‘हरिया’ बाग में रखो, बाद में मै महल में आउंगी. राम ने एक अंगूठी दी थी उसकी मदद से हनुमानजी सीता को खोज कर उसे आश्वासन देते है. लंका के बाग नष्ट करने के कारण रावण हनुमानजी कि पूंछ में आग लगा देता है. हनुमानजी उसी आग से लंका को जला देते है और राम के पास जाकर सीता के समाचार देते है.
राम-लक्ष्मण लंका पहुचाते है तब रावण का धोबी कपडे धो रहा था. लक्ष्मण उसे सोने कि माला देकर मंदोदरी के कपडे ले लेता है और उसे पहनकर रावण के पास जाता है. रावण से पूछता है कि उसकी मृत्यु कैसे होगी. रावण ने अपनी मृत्यु का भेद उसे बताया कि ‘ मेरे प्राण आकाश में सूरज के रथ में बैठे हुए भवरे के अंदर है. बारह घानी का तेल उबालकर, उस बर्तन कि धार पर खड़े होकर मध्याह्न के समय आकाश में उड़ते भवरे को तेल के बर्तन में उसका प्रतिबिम्ब देखकर तीर से मारना है. जब वह भवरा तेल में उबलेगा तब ही मेरी मृत्यु होगी और जिसने बारह साल तक ब्रह्मचर्य का पालन किया होगा वही ऐसा कर सकेगा.’
जब मंदोदरी रावण के लिए भोजन लेकर आइ तब रावण को पता चला कि मैंने दुश्मन को अपनी मृत्यु का भेद बता दिया है. लक्ष्मण ने बारह साल ब्रह्मचर्य का पालन किया था इस लिए उसने रावण को मार दिया. किन्तु तेल में पड़े हुए भवरे कि प्रकाश रेखा में से निकलती हुई आग से लक्ष्मण मूर्छित हो गए.
माता अंजनी हनुमानजी को मेरु पर्वत से अमरज्योत लाने के लिए भेजती है लेकिन मेरु पर्वत के सभी पत्तों पर ज्योत दिखाई देती है. हनुमानजी मुश्किल में पड जाते है तब माता अंजनी कहती है कि ‘मेरु पर्वत को उठाकर समुद्र में फेंक दो, जो ज्योत सच्ची होगी वही प्रज्वलित रहेगी.’ हनुमानजी में उतनी शक्ति नहीं थी तो अंजनी ने अपने दूध से पर्वत को तोड़ दिया. हनुमानजी में भी शक्ति का संचार हुआ और उन्होंने मेरु पर्वत को समुद्र में फेंक दिया. प्रगट ज्योत लेकर आये और लक्ष्मण जी को स्वस्थ किया.
राम और सीताजी को हनुमानजी के पुत्र मकरध्वजने समुद्र पर करवाया. अयोध्या आते ही कौशल्या ने राम को सीता का त्याग करने का आदेश दिया. माता कि आज्ञा का पालन करते हुए रामने लक्ष्मण को सीता को वन में छोड़ने का आदेश दिया और सीता को एक फल देते हुए कहा कि ‘इश्वर कि इच्छा होगी तो मिलेंगे.’ कौशल्याने लक्ष्मण को सीता कि हत्या करने का आदेश दिया लेकिन लक्ष्मण सीता को वन में जीवित छोड़ कर आये और मृग को मरकर उसकी आंखे निकालकर कौशल्या को दिखाई. कौशल्याने मृग कि आंखों को सीता की आंखे मान कर हाथो से मसलकर फेक दी और लक्ष्मण को इस कार्य के लिए साधुवाद दिया.
सीता वनमे मूर्छित हो गयी थी. मूर्छा दूर होने के बाद वह पानी पिने गई. वहाँ एक शेर उसे मारने आया. सिताने पानी से शेर का कुष्ठ रोग मिटाया. प्रसन्न हो कर शेर सीताको एक ऋषि के आश्रम मे ले गया. वहां जाकर सिताने राम का दिया हुआ फल खाया. आश्रममे ही लव का जन्म हुआ.
एकबार सीता लवको ऋषि के पास जुले में छोड़कर स्नान करने जा रही थी. ऋषि ध्यान में मग्न थे. सीताको लगा की ऋषि ध्यान में है तो लव को साथ ही ले जाती हु. ऋषि ध्यान से जगे और देखा तो जुले में लव नहीं था. उन्हें लगा की सीता बच्चे के बारेमे पूछेगी तो क्या कहूँगा? तो ऋषिने दर्भ के घास से बच्चा बनाकर रख दिया. इसी तरह सीता को कुश कि प्राप्ति हुई.
राम ने वन में अश्व भेजा. लव-कुश ने वनमे घुमते हुए राम के यज्ञ के अश्व को पकड़ लिया. अश्व को छुड़ाने राम के सैनिक आए उन्हें भी पकड़ लिया. इसी कारन राम और लव-कुश के बिच युध्ध हुआ. सिताने राम के पांव पकड़कर क्षमा मांगी. लक्ष्मण को दो पुत्रो के बारे में शंका हुई लेकिन ऋषिने इस का समाधान किया. अंत में सभी प्रसन्न होकर अयोध्या लौटे. भरत और शत्रुघ्नने राम को राजगादी सोपी लेकिन रामने इस का अस्वीकार किया और जगत कि प्रदक्षिणा करने निकल गए.
इस कथानक से पाता चलता है कि ‘रामायण’ के प्रसिद्ध कथानक से यह कितना भिन्न है ! कुछ प्रमुख भिन्नताए इस प्रकार है:
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प्रि.डा.दीपक रावल
एम्.ऐ.परीख फाइन आर्टस एंड आर्टस कोलेज
जी.डी.मोदी विद्या संकुल
पालनपुर – ३८५००१ (बनासकांठा) गुजरात
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