SahityasetuISSN: 2249-2372Year-4, Issue-2, Continuous issue-20, March-April 2014 |
अमृतलाल नागर के उपन्यासों में पारिवारिक विघटन
प्रस्तावना
समकालीन उपन्यासों में किसी खास प्रवृत्ति या विचारधारा का प्रभाव या दबाव नहीं है। इन उपन्यासों में विषयगत विविधता, शिल्पगत नवीनता और प्रयोगशीलता है। वर्तमान उपन्यासकार वैचारिक जीवनानुभव हैं।
परिवार एक ऐसी सामाजिक इकाई है जिसमें कुछ मनुष्य मिलकर रहते हैं व परिवार का मुख्य आधार विवाहित स्त्री-पुरुष का संबंध होता है। इस प्रकार एक परिवार में पति-पत्नी और उनकी सन्तान प्रमुखतः होती है। परिवार की अनेक विद्वानों ने अनेक प्रकार से परिभाषाएँ की है।
‘मेकाइवर और पेज’ के अनुसार - “परिवार एक ऐसा समूह है जो निश्चित यौन संबंधों पर आधारित है और इतना छोटा व शक्तिशाली है कि सन्तान के जन्म और पालन पोषण की व्यवस्था करने की क्षमता रखता है।”
पारिवारिक विघटन के कारण
आधुनिक काल में संयुक्त परिवार प्रणाली शनैः शनैः समाप्त होती जा रही है। आधुनिक - परिस्थितियों तथा समय की आवश्यकताओं और परिवर्तित मान्यताओं को देखते हुए विद्वान भी एकांगी और असंयुक्त परिवार को ही आदर्श परिवार मानते हैं जैसा कि ‘फोत्सम’ ने कहा है - “दो बच्चों का परिवार आजकल के व्यापक सामाजिक नियम का आदर्श है”।
निसन्देह आधुनिक युग में तेजी से बदलते हुए सामाजिक मूल्यों और आदर्शो ने परिवार जैसी सामाजिक संस्था को प्रभावित किया है। आधुनिक प्रवृत्तियों से प्रभावित परिवार दिन-प्रति-दिन प्रचीन मान मूल्यों, आदर्शो व संयुक्त परिवार की एकता को खो बैठे हैं।
आधुनिक प्रवृत्तियों से प्रभावित परिवार दिन-प्रतिदिन प्राचीन मानमूल्यों, आदर्शों व संयुक्त परिवार की एकता को खो बैठे हैं। संयुक्त परिवार आज इसलिए टूट रहे हैं कि आधुनिक प्रवृत्तियों से उनका सामंजस्य नहीं हो पा रहा है।
के.पी.चटोपाध्याय ने लिखा है - “आणविक परिवार एक ऐसी गृहस्थ इकाई है, जो पति-पत्नी और बच्चों में ही केन्द्रित है और जिसमें संयुक्तता का अभाव है।”
आधुनिक युग में सामाजिक मूल्य व आदर्श बदल रहे हैं। सामाजिक संबंधों का रूप बदल रहा है। पारिवारिक व व्यक्तिगत आवश्यकताओं के बढ़ने के फलस्वरूप अर्थोपार्जन हेतु कार्यभार स्त्री और पुरुष दोनों पर ही पड़ने लगा है, जिससे मानसिक असन्तोष व तनाव बढ़ता जा रहा है,जो संयुक्त परिवार प्रणाली के लिए घातक सिद्ध हो रहा है। शहरी जीवन इतना व्यस्त हो गया है कि व्यक्ति पारिवारिक जीवन से कोई लगाव अनुभव नहीं करता। जीवन में समरसता न होने से सामाजिक आदर्शों और मूल्यों में इतनी विविधता आ गई है कि उनके कारण पारिवारिक संगठन शिथिल हो रहे हैं।
विवाह के आधार में भी परिवर्तन हुए हैं। नयी पीढ़ी विवाह को एक समझौता मानने लगी है। विवाह विच्छेद को आजकल बुरा नहीं समझा जाता। विवाह का आधार - प्रेम या श्रद्धा - की भावना न रहकर, भौतिकता की भावना हो चुकी है। इसके अतिरिक्त अन्तर्जातीय विवाह भी पारिवारिक विघटन के प्रमुख कारणों में है। अधिकांश युवक युवतियाँ बिना सोचे-समझे गलत चुनाव करके, प्रेम विवाह रचा बैठते हैं और बाद में एक दूसरे की रुचियाँ, मानसिक स्तर भिन्न पाने पर, एक दूसरे से दूर भागते हैं। यह प्रवृत्ति भी संयुक्त परिवार प्रथा को समाप्त कर रही है।
पुरानी पीढ़ी भी पारिवारिक विघटन के लिए काफी सीमा तक जिम्मेदार है। माता-पिता भी परिवर्तित मानमूल्यों व सिद्धान्तों के साथ समझौता करने की तैयार नहीं होते। वे नई पीढ़ी से आशा करते हैं कि उनकी जीर्ण-शीर्ण मान्यताओं और रूढ़वादिता की वे सहर्ष स्वीकार कर जीवन में अपनाए। नियन्त्रण में रहे। लेकिन जब उनकी इच्छाओं के विरुद्ध पीढ़ी मनमाना आचरण करती है,तो वृद्धजन उनकी कटु आलोचना करते हैं, जो पारिवारिक वातावरण को दूषित करती है। जिससे पारिवारिक सदस्य एक दूसरे से दूर होते जाते हैं।
भौतिकवादी युग में धर्म का भी महत्व घट रहा है। पहले तलाक को पाप समझा जाता था लेकिन आजकल विवाह विच्छेद अधार्मिक पाप कृत्य नहीं समझा जाता जैसा कि ‘वैस्टर मार्क’ ने लिखा है- “पारिवारिक जीवन व्यक्ति के लिए आज उतना महत्वपूर्ण नहीं रहा जितना कि कई वर्ष पूर्व था। यह स्त्री और पुरुष दोनों के लिए ही कम महत्वपूर्ण हो चुका है। अवैवाहिक जीवन की तुलना में वैवाहिक जीवन के लाभ कुछ अर्थों में कम हो गए है।६६संयुक्त पारिवारिक जीवन की पवित्रता, उच्चता में विश्वास समाप्त होता जा रहा है।
अमृतलाल नागर के उपन्यासों में पारिवारिक विघटन
अमृतलाल नागर जी के उपन्यासों में असंयुक्त परिवार के अनेक चित्र मिलते हैं। लेकिन ऐसे चित्र कम ही हैं तथा विस्तृत नहीं है। जैसे - ‘बूँद और समुद्र’ के ‘ ताई ’ का परिवार इतना आणविक है कि उसके सिवाय घर में दूसरा कोई प्राणी नहीं। मन बहलाव के लिए ताई बिल्ली के बच्चों को पाल लेती है। ‘ताई, का विवाह शहर के प्रसिद्ध व्यक्ति ‘रामबहादुर द्वारकाप्रसाद’ के साथ हुआ था। जिनसे ताई का विवाह के कुछ समय बाद ही अलगाव हो गया था। फलतः द्वारकाप्रसाद ने दूसरा विवाह कर लिया था। अहंकारिणी, क्रोधी ताई उसी रात से पति गृह छोड़कर द्वारकाप्रसाद के पुरखों की हवेली में वास करने लगी थीं। तब से कभी भी लौटकर पति के पास नहीं गई। एक तो स्वभाव से क्रोधी और चिड़चिड़ी, उसपर भी पति परित्यक्ता ताई, मुहल्ले भर में अपने जादू-टोने के लिए प्रसिद्ध हो जाती हैं। वह अपने असन्तुष्ट जीवन को कड़वाहट, जादू-टोने द्वारा दूसरों के सुखी जीवन में बिना बात ही उड़ेलती रहने वाली स्त्री है।
‘बूँद और समुद्र’ के ‘सज्जन’ और ‘वनकन्या’ भी एक परिवार के सदस्य हैं। वनकन्या क्रान्तिकारी विचारों वाली विद्रोहिणी नारी है। उसे जनसंघ से मानसिक लगाव है। उसके ये राजनीतिक विचार तथा पिता का भाभी के प्रति अनैतिक आचरण उसे अपना घर छोड़ने पर विवश कर देता है। इसी बीच उसकी भेंट होती है एक उच्च कुलीन घराने के लड़के सज्जन से,जो एक चित्रकार है। वह वंश परम्परानुसार मिलने वाली बहुत बड़ी जायदाद व सम्पत्ति का मालिक है। उसके माता-पिता का देहान्त हो चुका है। फलतः एकाकी सज्जन को क्रान्तिकारिणी देखने में सुन्दर, भोली-भाली, गौरवर्ण वाली किशोरी वनकन्या पहली भेंट में ही प्रभावित करती है। दोनों की मित्रता हो जाती है। शनैः शनैः यही मित्रता प्रेम का रूप ले लेती है। अन्ततः प्रेम विवाह में परिणत हो जाता है। दोनों उसी शहर में अपनी गृहस्थी बसाते हैं तथा कभी-कभी वनकन्या अपने घर वालों से मिलने भी जाती है। लेकिन दोनों पति-पत्नी परिवार से अलग ही रहते हैं।
‘अमृत और विष’ के ‘रमेश’ और ‘रानी’ ने अर्न्तजातीय विवाह किया है, जो सफल सिद्ध होता है। दोनों संयुक्त परिवार प्रणाली के विरुद्ध हैं क्योंकि उनके अनुसार संयुक्त परिवार प्रथा व्यक्तित्व विकास में बाधा उत्पन्न करती है। अतः विवाह के बाद रमेश और रानी परिवार से अलग होकर एक किराये के मकान में रहते हैं।
जबकि ‘भवानी शंकर’ भी एक दूसरी जाति की लड़की से विवाह करके अपना घर बसाते हैं लेकिन उनका अन्तर्जातीय प्रेम विवाह असफल हो जाने के कारण उनका यह आणविक परिवार भी समाप्त हो जाता है।
इसी प्रकार ‘सुमित्रा’ जो आयु में ‘रानी’ के बराबर है, रानी के पिता ‘रद्धू सिंह’ से विवाह करती है लेकिन आयुभेद के कारण उनका परिवार भी पारस्परिक कलह से विघटित हो जाता है।
‘सात घूँघट वाला मुखड़ा’ में ऐतिहासिक घटनाओं का ही अधिक चित्रण होने के कारण, प्रमुख रूप से परिवारिक प्रणाली का चित्रण नहीं मिलता है। लेकिन ऐतिहासिक पात्रों के दाम्पत्य जीवन का सजीव चित्रण है। ‘नवाब समरू’ और उनकी पत्नी ‘बेगम समरू’ का दाम्पत्य जीवन प्रगाढ़ स्नेह व भावनात्मक प्रेम के स्थान पर असन्तोष, दिखावट व मात्र शारीरिक प्रेम पर ही आधारित है। फलतः पूर्ण रूपेण असफल है। बेगम व्यभिचारिणी स्त्री है, जो राजनीति सम्बन्धी विभिन्न चालें खेलती है तथा अपने पति नवाब समरू को हर प्रकार से धोखा देती है। धोखा ही नहीं देती वरन् उसे भावनात्मक रूप से इतनी चोट पहुँचाती है कि दुःखी होकर नवाब एक दिन आत्महत्या कर लेता है।
इसके अतिरिक्त ‘शतरंज के मोहरे’, ‘एकदा नैमिषारण्ये’, ‘मानस हा हंस’, ‘सुहाग ने नूपुर’, में असंयुक्त परिवारों के चित्रण की ओर लेखक का न ध्यान गया है और न ही उनके चित्रण का अवसर ही मिला है जितना कि मानवीय भावनाओं,सम्वेदनाओं और कुण्ठाओं के चित्रण का।
इस प्रकार अमृतलाल नागर ने ‘बूँद और समुद्र, सात घूँघट वाला मुखड़ा’ तथा ‘अमृत और विष’ उपन्यासों में असंयुक्त’ परिवारों के सजीव चित्र प्रस्तुत किए हैं। पारिवारिक सदस्यों के पारस्परिक सम्बन्धों, रहन-सहन, खान-पान, रीति-रिवाजों, ईर्ष्या-द्वष की भावनाओं तथा संयुक्त परिवार के सदस्यों की कुण्ठाओं, बन्धनों व अनियमितताओं के चित्रण के साथ, आधुनिक आणविक परिवारों की विभिन्न समस्याओं की ओर संकेत किया है।
संदर्भ सूचि :-
१ समाज और संस्कृति के चितेरे : ‘अमृतलाल नागर’ (एक अध्ययन) -डॉ.दीप्ति गुप्ता
२ हिन्दी उपन्यास का इतिहास -गोपाल राय
******************************
चौहाण बाजुभाई सी. (पी एच.डी. छात्र)
M.A. B.Ed. NET
क्रांतिगुरु श्यामजी कृष्ण वर्मा कच्छ युनिवर्सिटी,भूज (कच्छ) गुजरात
Home || Editorial Board || Archive || Submission Guide || Feedback || Contact us
Copyright © 2011- 2024. All Rights Reserved - sahityasetu.co.in Website designed and maintenaned by: Prof. Hasmukh Patel