पैसिफिक कवी अल्बर्ट वेंडट की कुछ कविताओं का हिंदी अनुवाद
अनुवाद : डॉ अमित सारवाल*
1. सूर्य में कोई टापू नहीं, बस साहब हैं
सूर्य में कोई टापू नहीं.
बस एक अचल आँखों वाला लड़का मांगता,
"सुनिये, साहब, आपके पास पांच पैसे हैं?"
सूर्य में कोई टापू नहीं.
बस एक अभेद्य साहब जबाव देता.
"ओ, लड़के, भाग यहाँ से,
गाडी मत गन्दी कर!"
सूर्य में कोई टापू नहीं.
बस मेरी सचेत बेटी पूछती,
"सुनिये, पिताजी, आप कब से साहब हो गए?"
2. शहर और गांव
एक शहर बनता है
लोहे, पत्थर, और लकड़ी से.
एक गांव बनता है
ताड़ के पत्तों, लोगों, और बड़े सन्नाटे से.
में गांव की ओर आकर्षित होता हूँ
पर रहता शहर में हूँ.
ऐसा क्यों है? में हमेशा
पूछता हूँ स्वयं से.
शहर में मैं छिप सकता हूँ
बड़े सन्नाटे से
जो छा जाता है शाम को.
3. घर
यह घर मुझे जानता है. यह
पांच वर्षों में बन गया है
वितान मेरी खुशियों
और चिंताओं का, जाना-पहचाना
उन हातों जैसा जो ढकेल देते हैं
दरवाज़ों को
उन चीज़ों पर जिन्हे आपको
देखने की जरूरत नहीं
यह बताने के लिये की वह वंहा हैं.
कैसे
वास्तविकता सरल है! सब
चीज़ें हैं तो एक ही
सूत्र की जो बीनता
है संसार. यह
घर फलता-फूलता है मेरे मन में.
(अल्बर्ट वेंडट, ‘हाउस’, इनसाइड अस दी डेड - पोयम्स १९६१ टू १९७४, ऑकलैंड: लोंगमेन पॉल लिमिटेड, १९७६)