Download this page in

1. आज भी एक पिता

आज भी एक पिता के लिए उसकी बेटी
मजबूर होने का सबब बन रही है
सब कुछ में मीडियम होते हुए भी
समाज से नकारे जाने के सोच से सफर कर रही है

यह वही पिता है
जिसने बेटी पर ना कभी कोई पाबन्दी लगाई
ना ही बेटी की किसी इच्छा पर मनाही की मुहर लगाई

लेकिन आज जब बेटी बड़ी हो गई
उसके लिए वर की तलाश भी जारी हो गई तो
अब
पिता को रह रह कर यह अहसास सा हो रहा है कि
क्यों बेटी को शहरनुमा माहौल में उसने ढलने दिया
क्यों बेटी को समय के साथ चलने दिया

शायद

अगर बेटी समय से पीछे रहती
शहर को ना अपनाये होती
तो
समाज शायद उसे ना नकारता

शायद ही?

पिता इस सोच में खुद को घुलाये ही जा रहा है
पर एक पिता अपनी उम्मीद को कहां छोड़ता है?
बेटी का ब्याह ही उसकी संस्कृति में
उसे गंगा नहाने का पुण्य दिलाता है

2. कविता लिखनी की भी एक शर्त होती है

कविता लिखनी की भी एक शर्त होती है
यह शर्त भी कई बार बेअसर होती है
हाथ कलम तो पकड़ना चाहती है
पर
कलम शब्द फूटने से परहेज़ करती है
ढलती शाम का सूरज और उगती शहर की लालिमा
मन को शीतलता के काफी करीब तक ले जाती है
जहन में बुनते हुए उथल पुथल ठहराव को तलाशती है
तब
मन कविता के भाव को उकेरती है और
शब्दों में पिरोती है
कभी अपनी सी कभी पराई सी प्रतीत होती है
जब भी उमड़ती है तो बेपनाह उमड़ती है
जहां चाह वहां राह फिर तो चक्कर घिरनी सी घूमती है
रह रह कर हाल ए दिल, दर्द ए जुबां बयान करती है
यह तो अठखेलियों सी अल्हड़पन करती है
यह तो तितली बन हर जुबां का हाल जान लेती है
लेकिन
अक्षरों में सिर्फ सिमटने में वक़्त लगाती है

3. तुम्हारा प्यार

तुम अब कहने लगे हो
दिल के हाथों तुम मजबूर होने लगे हो
ना चाह कर भी मेरी नादानी नासमझी को
दरकिनार करने लगे हो
यही सहजता मुझे ना जाने क्यों
हमारे हो रहे मजबूत रिश्ते की गवाही देने
लगी है
समय दर समय रिश्ते की गहराई भी हम मापने
से लगे है
तुम्हारी सहजता मुझमे चंचलता भरती है
तुम्हारी कोमलता मुझमे स्नेह सराबोर करती है
तुम्हारी कठोरता मुझे जिंदगी से काटती है
तुम्हारी नारजगी मुझे उदासी में घेरती है
तुम तक ही अब मेरी जिंदगी, जिंदगी ढूंढती है
तुम्हारे अहसास से जुड़ कर ही अपने अहसास को खिलाती और सॅवारती है
मेरी दरख्वास है रब से
तुम युही मेरी नादानी नासमझी को अपने दुलार से दरकिनार करो
हमारे रिश्ते को बस युहीं वर्ष दर वर्ष हमारे प्यार से सींचते रहो

4. ये रात

यूँ सारी सारी रात जग कर गुजारना
भी एक सुखद ही अहसास होता है
खुद में खोना
खुद को सुनना
और फिर खुद को खंघालना
एक बड़ा ही अच्छा शोध है
पहले पहल कुछ पल
बिखरा सा मिलता है
फिर
धीरे धीरे इसमें रस घुलता है
फिर तो
इस घुलने में ही रात की खुमारी भी
दूर झिटक जाती है

5. प्यारी सी जिंदगी

बहुत प्यारी सी जिंदगी लगी कल रात मुझे
सुनहरी सी रात की शुरुआत में मैं
साथ तुम्हारे खुले सड़कों की आवोहवा को महसूस रही थी
खुद मदहोशी थी
लेकिन तुम्हारी मदहोशी को संभाल रही थी
तुम्हारी शरारती नज़रों को
खुद की लडखडाती हुई कदमों से रोक रही थी
तुम्हारे प्यार भरे अल्फ़ाज़ों को
खुद की मदहोशी में धीरे-धीरे घोल रही थी
कुछ देर एक दूसरे को थामे हम चलते रहे
दुनिया की फ़िक्र छोड़
एक दूजे में खोते रहे
मदहोशी के भरपूर आगोश में भी
तुम्हारा मेरे लिए हर ख़ुशी बटोर लेना
मन के सागर से पलकों को भीगोता रहा
मेरी बिंदास खोयाइशों में से एक खोयाईश पूरी हो रही थी
मन और दिल दोनों को राहत मिल रही थी
सब कुछ हौले हौले से फिसल रहा था
पर
मन इन सब कुछ को वक़्त के घेरे में कैद कर लेना चाहता था

6. मुक्त

मैं क्यों बंधू उस रिश्ते में
जिसे रुपयों से टटोला जाता हैं
क्यों बंधू मैं उस रिश्ते में
जिसे सोने से तौला जाता हैं
कहने को हिस्सा हूँ मैं आधी आबादी का
फिर
क्यों हर बार मेरी बोली लगती हैं
रिश्ता ताउम्र का बनाना हैं
अफ़सोस
हर बार मंडी क्यों सजती हैं
मैं क्यों बंधू उस रिश्ते में
जिसे रुपयों से टटोला जाता हैं
वो कहते है ... रोते हैं .... चिल्लाते है ...
कभी – कभी डराते हैं, धमकाते हैं
मैं कहती हूँ
नही बंधना मुझे उन रिश्तों में
जहाँ जेब होतो ... जन्नत हो ...
नही बंधना मुझे उस रिश्ते में
बिना जेब जहाँ जहन्नुम हो ...
क्यों बंधू मैं उस रिश्ते में
जिसे सोने से तौला जाता हैं
क्यों झुकू किसी के जिद के आगे
मैं तो मुक्त रहना चाहती हूँ
क्यों रुकूं किसी के जिद के आगे
मैं उन्मुक्त उड़ना चाहती हूँ
मैं क्यों बंधू उस रिश्ते में
जिसे रुपयों से टटोला जाता हैं
मैं क्यों बंधू उस रिश्ते में
जिसे सोने से तौला जाता हैं

7. मैं क्यों लिखती हूँ

मैं जो भी लिखती हूँ, नही जानती कि क्यों लिखती हूँ
यह खाली पन्ने
मुझसे देखे नहीं जाते
मैं इन पन्नों को भरने के लिए लिखती हूँ
मन के अंदर खाने में मची है हलचल मेरे
मैं इस हलचल को शांत करने के लिए लिखती हूँ
अपने आप से जंग ठाने बैठी हूँ मैं
मैं अपनी जीत टी करने के लिए लिखती हूँ
उड़ना चाहती हूँ मैं भी दूर गगन में
मैं पंखों की चाहत में लिखती हूँ
हैं रास्तों पर लाख कांटे बिछे हुए
मैं मंजिल पाने के लिए लिखती हूँ
कोरे कागज के सामान जिन्दगी है मेरी
मैं जिन्दगी को रंगीन बन्ने के लिए लिखती हूँ
है लाख शिकायत मुझे उस खुदा से
मैं उस खुदा को पाने के लिए लिखती हूँ
मैं लिखती हूँ, नहीं जानती की मैं क्यों लिखती हूँ .