खुद की कुचलन के दर्द की तड़पन को
हर माँ , बेटी , बहन, अपने भीतर महसूस करती
अपने अस्तिव को बचाने के लिए पल-पल
अंदर ही अंदर जलती
आक्रोश हैं , गुस्सा हैं , नफरत
वह बुझाये केसे ?
डर समाए हुए हैं खौफ समाये हुए हैं
कब किसी इन्सान रूपी राक्षस
से सामना हो जाये
कब हमसे हमें नौच डाले
चेहरे
मेरे चारो तरफ हैं बनावटी चेहरों का
झमेला
जहाँ दिन के उजाले में खुद को
मोह-माया से दूर दिखाते
वही रात के अँधेरे में
मोह-माया के पीछे भूखे
कुत्तो की तरफ एक-दुसरे
का शिकार करते
हर कोई अपने सामने वाले
को मुर्ख समझता
हर बात में उसके स्वार्थीपन
झलकता
जितने ज्यादा रईस लोग
उतनी ज्यादा उनमे कुंठाग्रस्त की भावना
दिन-प्रतिदिन होता ऐसे
लोगो से सामना
दुसरो का खून चूसते और उन्ही का शोषण कर
अपने को सीचते