दिखती है...
तेरी आंखो में मुझको, तसवीर मेरी दिखती है,
तेरे हाथों में मुझको, तकदीर मेरी दिखती है ।
आसमान से उतरी तू, या कोई स्वर्ग से लाया है,
इतना सुंदर रूप सलोना, कहाँ से तूने पाया है..?
पहली बार छुआ था तूने, वो दिन मुझको याद नहीं,
कितना कितना कैसै कैसे, प्यार किया फरियाद नहीं ।
ठिठक ठिठककर ठुमक ठुमककर, जब जब तुझको चलते देखा,
तब तब मैंने माना ये ही, तू ही मेरी जीवन रेखा ।
मेरी सुबह तुझी से होती, शाम तुझीसे ढलती है,
जीवन के हर रूप रंग में, बस तू ही तू दीखती है ।
इतना प्यार न कर तू मुझसे, मैं जीते जी मर जाऊँगा,
बना आदमी एक जनम में, फिर क्या में बन पाऊँगा ...?
मेरे सिर पर बोझ बहुत है, क्यों तू और बढाती है,
नीचे उतर अरी ओ डायन, मेरी साँसे फूल जाती है ।
तेरे कारण बीबी रूठी, वच्चे रूठे, जीवन रूठा,
अपने छूटे, सपने टूटे, सब लगता बूलकुल है जूठा ।
मेरा हाल-चाल मत पूछ, हाल मेरा है खस्ता हाल,
लहू जिगर का सस्ता है, पर मँहगी हो गई मेरी दाल ।
प्याज एक रख पूजाघर में, बच्चों को दिखलाता हूँ,
ड्रापर से में दूध डाल के, उसको चाय पिलाता हू ।
मेरा घर शमसान हो गया
उसका हर इंसान सो गया ।
टप-टप आंसू बहते है, बहन की जब से टूटी सगाई,
भाई तो दीवाना हो गया, उसकी छूटी जब से पढाई,
मा मरघट पर बैठी है, कहाँ से लाऊ ईसकी दवाई,
बूढा बाप राह है ताकता, बेटा घर कब आयेगा...?
तीन महीने से जो कहा था, कुर्ता कब तूं लायेगा..?
लंबी जिंदगी हो गई छोटी, साँस-सांश नीलाम हूई,
दो रोटी के फेरों में, सुबह से मारी शाम हूई ।
इतने पल भी दिल न भरा, तू अब भी प्यार दिखाती है,
रोज रोज में मरता हूँ, फिर भी तू भरमाती है ।
नहीं चाहिए साथ तेरा ना, तुझसे मेरी कोई सगाई है,
खान-पीना जीना मरना, सब पे तू ही छाई है ।
कितने ही तेरे रूप हों लेकिन, नाम एक मँहगाई है,
लौटे उसी नगर को जा तूं, जहाँ से तू आई है ।
इतने पर भी दिल न भरा तू, अब भी प्यार दिखाती है,
रोज रोज में मरता हूँ, फिर भी तू भरमाती है ।
खाना पीना जीना मरना, सब पे तू वही छाई है,
कितने ही तेरे रूप हों लेकिन, नाम एक मँहगाई है ।
नहीं चाहिए साथ तेरा ना, तुझसे मेरी सगाई है,
लौट उसी नगर को तू जा, जहाँ से तू आई है ।
अरूणेन्द्रसिंग राठौर, प्रिन्सीपाल, गुजरात आर्ट्स एन्ड सायन्स कालेज, अहमदाबाद-6