ग़ज़ल
सीने में बेशुमार दर्द संजोये है सागर
दरियादिल अपने आप से रोये है सागर,
हर तरफ तबाही का कहर यूँ मचाये हुए
अपने सब्रो - सबील को खोय़े है सागर,
कल उसने करवट बदली है कसकते हुए
हर आँसू में फूल कलियाँ पिरोये है सागर,
तमाम हसरतों के बीच आप खामोश है
सारे अँचल को सबनमी भिगोये है सागर,
उसकी हसीं लहरों को देखकर लगता है
अपने दामन के दागों को धोये है सागर ।
आँखों ने काजल धोया दरिया को देखकर
यादों में उनकी रोया दरिया को देखकर,
आँखों के अश्क में वो तश्वीर बन गयी
बहारों ने बीज बोया दरिया को देखकर,
अब तो गली कूचों से रिश्ते गुजरने लगे
बागों में सावन रोया दरिया को देखकर,
मेरे नशेमन को उजड़े एक ज़माना हुआ
गो, तुमने उसे संजोया दरिया को देखकर
नज़र भरकर उसे देखा मासूम हँसी थी
फसानों को ता उम्र ढोया दरिया को देखकर
डा. ओमप्रकाश शुक्ल, गुजरात कॉलेज (सायं), अहमदाबाद. Mail id- ohshukla@yahoo.in