कोरोनाकाल : कला और हम
संसार में मानव सभ्यता का जब से उदय हुआ है, तब से ही प्रकृति और मानव के बीच एक अटूट संबंध रहा है, क्योंकि मानव भी प्रकृति की एक रचना मात्र ही है। इसमें कोई संदेह नहीं कि प्रकृति ने इंसान को तीव्र और तीक्ष्ण बुद्धि प्रदान की है, जिस का सदुपयोग करके विकास की नयी दिशाओं में वह आगे बढ़ा है। इसी बुद्धि का दुरुपयोग करने का श्रेय भी इंसान को ही जाता है। मानव ने कई बार प्रकृति से आगे निकलने की कोशिश की, जिसका परिणाम समय-समय पर मानव जाति को भुगतना पड़ा है। इतिहास साक्षी रहा है, कि जब-जब मानव ने प्रकृति के विरुद्ध कुछ कार्य किया है, तो उसका खामियाजा भी पूरी जीव-प्रजाति को भुगतना पड़ा है, जिसमें मानव से लेकर अन्य जीव जगत भी सम्मिलित हैं, जो इंसानी मूर्खता को स्वयं सदैव झेलते रहें हैं। जब तक स्थितियाँ प्राकृतिक रूप से चलती रहें तब तक तो ठीक, परंतु जब से मानव ने अपने विकास के साथ-साथ प्रकृति को दूषित, प्रदूषित और भ्रष्ट करना शुरू किया है, तब से स्थितियां परिवर्तित और विषम होती जा रही हैं।
वर्तमान समय में गगनचुंबी इमारतें, विशालकाय मशीनें, बड़े-बड़े ब्रिज, हवाई जहाज, वाहन और अंतरिक्ष तक मानव की पहुंच मानव के सक्षम बुद्धि वाले जीव होने के तथ्य को सार्थक करती हैं, परंतु विकास की इस दौड़ में कहीं-कहीं मानव अंधा हो चुका है, जिस पर किसी का कोई भी नियंत्रण नहीं रहा है। जब चीजें अनियंत्रित होती हैं, तो परिस्थितियाँ बदलती हैं, अनुकूल चीजें प्रतिकूल होती जाती हैं। बहुत सी चीजें जो लाभदायक थी, हानिकारक हो उठती हैं। बिना बौद्धिक नियंत्रण के किसी भी प्रकार की प्रतिक्रिया निरंकुश होती है, और कहीं ना कहीं नुकसान पहुंचाती हैं।
समय-समय पर विभिन्न रोग और विषाणु जीव आबादी पर हमला करते रहे हैं, जो प्राकृतिक रूप से उत्पन्न हुए और समाप्त होते गए। प्राकृतिक रूप से उत्पन्न हुए रोगों और विषाणु से मुक्ति के लिए मानव ने प्रकृति का दोहन करके अथवा उससे उपाय लेकर इन रोगों का निदान भी ढूंढा और उन पर नियंत्रण भी पाया, परंतु वर्तमान समय में इंसान की आगे बढ़ने की दौड़ इतनी अंधी हो चुकी है, कि मानव अपना और अन्य जीवों का शत्रु होता जा रहा है। कई विषाणु और रोग मानव जनित हो चुके हैं, जिनका पूर्व में कहीं कोई अस्तित्व नहीं रहा। विभिन्न प्रकार के रसायन, फैक्ट्रियाँ, प्रदूषण नई-नई बीमारियों और विषाणुओं की उत्पत्ति का कारक रही हैं। मानव विकास की अंधी दौड़ में मूल कारकों का निदान न करके आगे बढ़ने की दौड़ में भागे चले जा रहा है। प्रकृति ने अपनी क्षमता और आधिपत्य को समय-समय पर सिद्ध भी किया है। उसने एक ओर जीव-जंतुओं और मानव को बढ़ने और अपना सर्वांगीण विकास करने का वातावरण और परिस्थितियां उपलब्ध कराती है, सकारात्मक वातावरण देती है, तो दूसरी ओर प्राकृतिक आपदाओं द्वारा अपने क्रोध और उपस्थिति को भी दर्ज कराती है।
वर्तमान समय में हम ऐसी ही एक वैश्विक महामारी का सामना कर रहै हैं। 2019 के बीतने के साथ एक शहर से शुरू हुए इस विषाणु जन्य रोग ने 2020 के प्रारंभ तक विश्व के की देशों को अपनी चपेट में ले लिया, और वर्तमान समय में यह वैश्विक महामारी वैश्विक महामारी बन गई है, जिसे नाम दिया गया है- कोविड-19 (कोरोना वायरस)। भूमंडलीकरण के समय में एक रोग एक शहर से शुरू होकर पूरे विश्व में कुछ ही समय में कैसे फैल जाता है, और एक वैश्विक महामारी का रूप ले लेता है, यह हमारे सामने एक जीवंत उदाहरण है। विश्व में वर्तमान में करोड़ों लोग इस वायरस से संक्रमित हो चुके हैं, और लाखों लोगों की मृत्यु इस बीमारी के कारण हो चुकी है। राहत की बात यह है कि इस बीमारी से संक्रमित होकर ठीक हुए लोगों कि संख्या भी अच्छी-खासी है। दुनिया भर के वैज्ञानिक और चिकित्सा शोधकर्ता इस वायरस जनित बीमारी के निदान के लिए दिन-रात मेहनत कर रहे हैं, और इसकी दवा की खोज करने में जुटे हुए हैं। पिछले कुछ समय से इस बारे में कुछ सकारात्मक परिणाम भी सामने आए हैं, पर इस बीमारी को जड़ से समाप्त कब तक किया जा सकेगा, यह देखने वाली बात है।
लोगों ने कभी नहीं सोचा था, कि एक ऐसा वायरस दुनिया भर में फैल कर वैश्विक संकट बन जाएगा जो लोगों को घरों में बंद रहने के लिए मजबूर कर देगा। लॉकडाउन जैसे शब्द से आज प्रत्येक व्यक्ति परिचित हो चुका है। जब तक कि कोई असरदार इलाज नहीं मिल जाता, तब तक इस रोग से बचने में भले ही लॉकडाउन सबसे अधिक कारगर सिद्ध हुआ है, परंतु लंबे समय तक बाजारों और अर्थव्यवस्थाओं को बंद नहीं किया जा सकता, यह तथ्य भी हमारे सामने है। पिछले कुछ समय से कई चिकित्सा शोधजगत से इस बीमारी से बचाव कि दवाइयों के संदर्भ में कुछ सकारात्मक परिणाम भी सामने आए हैं, परंतु देखने वाली बात है कि इस वायरस और रोग को जड़ से समाप्त किया जा सके, यह कब तक संभव पाता है।
चीन के शंघाई शहर के एक चित्रकार ली-झोंग (Li Zhong) ने भी लगभग डेढ़ महीने का समय क्वॉरेंटाइन होकर घर पर बिताया। उन्होंने टेलीविज़न समाचारों और ऑनलाइन रिपोर्टिंग में इस महामारी में लगे चिकित्सा कर्मियों और अन्य फ्रन्टलाइन योद्धाओं को काम करते हुए देखा और अनुभव किया। कोरोना वायरस महामारी से निपटने और इस रोग से पीड़ित लोगों की सेवा में लगे हुए इन कर्मचारियों को बारीकी से देखकर एक कलाकार के हृदय से ली-झोंग ने अनुभव किया, और उन भावनाओं को कलाकार के परिपेक्ष्य से बखूबी अपने चित्रों में उतार दिया है। इन चित्रों को देखकर हम स्वयं इन मास्क और सुरक्षावस्त्र उपकरण (PPE) पहने इन अनजान योद्धाओं को तल्लीनता से अपने कार्य में लगे हुए देखकर इस महामारी की त्रासदी को महसूस कर सकते हैं।
ट्रिकॉन्टीनेंटल इंस्टीट्यूट फॉर सोशल रिसर्च (Tricontinental Institute for Social Research) के टिंग्स चाक (Tings Chak) ने इस चीनी चित्रकार ली-झोंग से उनके चित्रों के बारे बात की। ली-झोंग शंघाई एकेडमी ऑफ प्रिंटिंग एंड केलीग्राफी (Shanghai Academy of Painting and Calligraphy) के सदस्य कलाकार हैं, और फेंगशियाँ डिस्ट्रिक्ट आर्टिस्ट एसोसिएशन (President of the Fengxian District Artist Association) के अध्यक्ष भी हैं। ली-झोंग ने ‘ट्रिकॉन्टीनेंटल इंस्टीट्यूट फॉर सोशल रिसर्च’ को बताया कि उन्होंने कोविड-19 महामारी कि घटनाओं और त्रासदी की घटनाओं को गहराई से देखा है, और इसको ही चित्रांकन और रंगों के माध्यम से व्यक्त करने का प्रयत्न किया है। आगे कहते हैं कि वह चीनी लोगों का बहादुरी से इस महामारी से लड़ने और उसकी प्रक्रिया व क्रियाकलापों का एक प्रकार से रिकार्ड ही तैयार कर रहे थे।
इस चित्रकार ने अपने डेढ़ महीने के क्वॉरेंटाइन समय का सदुपयोग करते हुए वुहान शहर के कोरोना योद्धाओं और श्रमिकों के सम्मान में वाटर कलर माध्यम में कुल 129 चित्रों की रचना की। टिंग्स चाक द्वारा जब उनसे पूछा गया कि कलाकारों को इस आपदा के समय में क्या करना चाहिए? ली-झोंग ने कहा कि हमें परिस्थितियों को सकारात्मक रूप में दर्शाना चाहिए, कलाकार को सच्चा होना चाहिए। अन्य देशों या लोगों को दोष न देकर गलत जानकारी नहीं फैलानी चाहिए, क्योंकि हमारे सामने सबसे बड़ी चुनौती और प्राथमिकता इस वायरस को हराना है, इसलिए इस महामारी के समय हम सभी का एकजुट होना बहुत जरूरी है। ली-झोंग के अनुसार वुहान में कोविड-19 से लड़ने वाले कर्मचारियों के प्रति समर्पित चित्रों की इस श्रृंखला के माध्यम से उन्होंने इन कर्मियों को सम्मान प्रदान करने का प्रयत्न किया है।
चीन की प्रसिद्ध इंक वॉश चित्र शैली तांग राजवंश के दौरान उभरी और पूरे पूर्वी एशिया में फैलती गई। काली स्याही व हल्के रंगों के साथ एक नाजुक से चावल के कागज (Rice paper) पर चित्रित किए जाते हैं। एक स्ट्रोक लगने के बाद उसे फिर से ठीक नहीं किया जा सकता, एक क्षण को पकड़ने की इसकी क्षमता को यथार्थवाद से नहीं बल्कि इसके सार और दृश्य प्रभाव से मापा जाता है। इसी पारंपरिक चीनी स्याही शैली में इन इन कर्मियों के दिन-प्रतिदिन के क्रियाकलापों और महत्वपूर्ण कामकाजी क्षणों का चित्रण किया गया है। पतले रंगों के साथ काली स्याही के विभिन्न शैड प्रयोग हुए हैं। मुख्य रूप से इन चित्रों में मेडिकल आउटफिट के ब्लूज और रेड कलर दिखाई देते हैं। इस पूरी श्रृंखला में ली-झोंग ने इन तस्वीरों को वीचैट ‘मोमेंट्स’ पर पोस्ट करना शुरू किया जो धीरे-धीरे सोशल मीडिया पर फैलते हुए अंततः कुछ न्यूज़ एजेंसी तक भी पहुंच गयी। हालांकि इन चित्रों के पीछे कलाकार के बारे में बहुत काम जानकारी दी गई। इसी कारण ट्रिकॉन्टीनेंटल इंस्टीट्यूट फॉर सोशल रिसर्च ने शंघाई में इस चित्रकार से बात करने का निश्चय किया।
इस चित्र-शृंखला के दृश्यों में लोगों का तापमान चेक करने वाले कर्मचारी, व्यक्तिगत सुरक्षा उपकरणों वाले वस्त्रों की सिलाई करते लोग, कचरा साफ करते कर्मचारी, आपूर्ति पहुँचाने वाले श्रमिक, सभी मुखोटों (मास्क) के पीछे हैं, गुमनाम हैं, पर अपने कार्य में तल्लीनता से लगे हैं, दिखाई देते हैं। उनके एक चित्र में मेडिकल स्टाफ के दो लोग जमीन पर बैठकर जल्दबाजी में भोजन करते हुए दिखाई दे रहे हैं। ऐसा साफ दिखाई दे रहा है कि वह अपने कार्य में इतना अधिक व्यस्त हैं कि ठीक से भोजन करने का समय भी मुश्किल मिलता है।
वह एक ऐसे कलाकार हैं जो विज्ञान में गहरा विश्वास रखते हैं। उन्होंने अपने काम को सावधानीपूर्वक वर्गीकृत किया: रेजिंग एपिडेमिक , फ्रंटलाइन वॉरियर , ग्रासरूट्स प्रीज़रवेंस, लॉजिस्टिक सपोर्ट , सस्पेंशन ऑफ क्लासेस और एंटी-एपिडेमिक स्केच । लेकिन वह इस कहानी में एक नायक के रूप में खुद के बारे में बोलने से हिचकते हैं। इसके बजाय, वह समाजवादी मूल्यों की बात करते हैं। वह सरकार के निर्णायक कार्यों की सराहना करते हैं। ली-झोंग का कहना है कि समाजवादी देश पश्चिमी पूंजीवादी देशों से अलग हैं। हम चीनी लोग मेहनती हैं, और एकजुटता में विश्वास रखते हैं। ली-झोंग कहते हैं, दुनिया भर में लोग चीन के बारे में नकारात्मक बातें कह सकते हैं। उन्होंने चीनी लोगों की एकजुटता को कभी नहीं माना, परंतु वर्तमान परिदृश्य में चीन के प्रति पूरी दुनिया का दृष्टिकोण बदल गया है। विश्व के देशों को चीन से मदद मिल रही है, आज हर कोई चीन से मदद मांग रहा है। अपने श्रमिकों व कर्मचारियों की मदद से चीन 120 देशों को सहायता और आपूर्ति पहुँच रहा है। हमारे चिकित्सा क्षेत्र में काम करने वाले सामान्य लोग हैं, पर वह हमसे महान हैं। न केवल चिकित्सा कर्मचारी, बल्कि जमीनी स्तर के सामुदायिक कर्मचारी, अधिकारी जैसे कई लोग हैं, जिनमें से बहुतों ने इस महामारी की लड़ाई में सहायता करने के लिए अपने परिवार के साथ बिताने वाले समय का बलिदान दिया है।
यह महामारी किसी देश की सीमाओं तक सीमित नहीं रही। इस चुनौती से निपटने के लिए अंतरराष्ट्रीय वैज्ञानिक और चिकित्सा क्षेत्र में सहयोग ही सबसे ज्यादा कारगर है। सभी देशों ने अपने-अपने तरीके से इस महामारी से निपटने के प्रयास किए हैं, जो कुछ हद तक सफल भी रहे पर समाधान के लिए सब को एकजुट होना पड़ेगा। विकसित देश हों या विकासशील, अर्थव्यवस्था उच्च स्तर पर हो या औसत स्तर पर, प्रत्येक देश के लिए अपने आम-जन जीवन के स्वास्थ्य को बेहतर रखना ही सबसे महत्वपूर्ण रणनीति है। कोविड-19 जैसी वैश्विक बीमारी के बाद दुनिया में एक सकारात्मक सोच को बढ़ावा देने और लोगों की भावनाओं के साथ जुड़ने की आवश्यकता पर अधिक ध्यान देने की जरूरत होगी, हम अचानक से किसी आबादी में जाकर अचानक से बनी जन-कल्याणकारी योजनाओं द्वारा उनका दीर्घकालिक हित नहीं कर सकते। इस संकट के समय एक कलाकार की कृतियाँ भी अपने परिवेश से प्रभावित होती हैं, यह भी हम देख रहे हैं। एक सहृदय चित्रकार द्वारा इस महामारी से लड़ने वाले योद्धाओं की एकजुटता और समर्पण की भावना से प्रेरित होकर, अपनी रचनाओं में उन्हें स्थान देकर इनकी मेहनत और कर्मठता को रचनात्मक सम्मान देना प्रशंसा के योग्य है।
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सुनील कुमार, Research Scholar- IGNOU, MFA, BFA, Visual Artist