वैश्विक महामारी कोरोना के संदर्भ में साहित्यकी भूमिका
वैश्विक महामारियाँ अपने समय और भविष्य को प्रभावित करती आई है। राजनीति और भूगोल के साथ समाज और साहित्य भी इससे अछूता नहीं रहा है। दुनिया जब किसी विपदा में घिरी है तो सांस्कृतिक अभिव्यक्तियों में भी उनका असर हुआ है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने कोरोना वायरस को महामारी घोषित कर दिया है। कोरोना वायरस बहुत सूक्ष्म लेकिन प्रभारी वायरस है । कोरोना वायरस मानव के बाल की तुलना में नव सौ गुना छोटा है,परन्तु कोरोना का संक्रमण दुनिया भर में तेजी से फैल रहा है ।
कोरोना वायरस क्या है?– कोरोना वायरस (सीओवी) का संबंध वायरस के एसे परिवार से है, जिसके संक्रमण से जुकाम से लेकर सांस लेने में तकलीफ जैसी समस्या हो सकती है । इस वायरस को पहले कभी नहीं देखा गया है । इस वायरस का संक्रमण 26 दिसंबर 2019 में चीन के वुहान शहर में सर्वप्रथम शुरू हुआ था । WHO के अनुसार बुखार,खांसी सांस लेने में तकलीफ इसके मुख्य लक्षण हैं । अब तक इस वायरस को फैलने से रोकने वाला कोई टीका नहीं बना है । इसके संक्रमण के परिणाम स्वरुप बुखार,जुकाम सांस लेने में तकलीफ नाक बहना और गले में खराश जैसी समस्याएं उत्पन्न होती है। यह वायरस एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में फैलता है । इसलिए इसे लेकर बहुत सावधानी रखी जा रही है । यह वायरस सर्वप्रथम चीन में पकड़ में आया था । इसके दूसरे देशों में पहुंच जाने की आशंका जताई जा रही है । कोरोना से मिलते जुलते वायरस खांसी और छींकसे गिरने वाली बूंदों के जरिए फैलते हैं । कोरोना वायरस अब चीन में उतनी तीव्र गति से नहीं फैल रहा है,जितना दुनिया के अन्य देशों में फैल रहा है ।
कोविड-19 नाम का यह वायरस अब तक 70से अधिक देशों में फैल चुका है । कोरोना के सक्रमण के बढ़ते खतरे को देखते हुए सावधानी रखने की आवश्यकता है, जिससे इस से फैलने से रोका जा सके । कोरोना वास्तव में अत्यंत भयंकर रोग है, जिसका अभी तक कोई उपचार नहीं है । विश्व के सभी सभी देश इस रोग का उपचार ढूंढने में लगे हुए हैं । इस रोग के कारण संपूर्ण विश्व में काफी जानहानि हो चुकी है । कोरोना के रोक थाम के लिए भारतीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र्भाई मोदी ने ठीक समय पर लॉकडाउन करके गंभीर महामारी से देश को बचा लिया है। भारत सरकार की मार्गदर्शिका केअनुसार कोरोना रोकथाम में काफी मदद मिली है । अब हम वैश्विक महामारी कोरोनाके संदर्भ में साहित्य की भूमिका की चर्चा करेंगे, कि कोरोना काल में अर्थात् लॉकडाउन के समय में साहित्य ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाया है ।साहित्य चाहे किसी भी भाषा का हो वह साहित्य ही होता है, और वह समाज के प्रत्येक दर्जे के लोगों को समय का सदुपयोग करने का श्रेष्ठ अवसर प्रदान करता है । जैसे कि हिंदी साहित्य,गुजराती साहित्य या अंग्रेजी साहित्य में उपन्यास,कहानी,एकांकी,निबंध आदि का अध्ययन करना । समकालीन विश्व साहित्य में महामारी परविशद् कृति‘प्लेग’ को माना जाता है, कहा जाता है कि अल्जीरियाई मूल के विश्व प्रसिद्ध फ्रांसीसी उपन्यासकार अल्बैर कामू अपने उपन्यास ‘प्लेग’ के द्वारा उस समय रोग की भयानक स्थिति के बारे में बताते हैं । इस उपन्यास में दिखाया गया है,कि कैसे स्वार्थी और महत्वाकांक्षा और विलासिताओं से भरी पूंजीवादी और दुष्चक्रोवाली दुनिया में किसी महामारी का हमला कितना व्यापक और जानलेवा हो सकता है, यह उपन्यास में वर्णित है । प्लेग,चेचक इन्फ्लुएंजा, हैजा,तपेदिक आदि बीमारियों ने घर परिवार ही नहीं शहर के शहर उजाडे हैं और पीढियों को एक गहरे भय और संत्रास में धकेला है । चेचक को दुनिया से मिटे 40साल से अधिक हो चुका है । 20वीं सदी के प्रारंभ में एक भीषण महामारी के रूप में करोड़ों लोगों को अपना शिकार बना चुकी थी । रबीन्द्रनाथ टैगोर की काव्य रचना “पुरातनभृत्य” (पुराना नौकर) में एक ऐसे व्यक्ति की कहानी है, जिसमें मालिक की देखभाल करते हुए चेचक की चपेट में आ जाता है । 1903में टैगोर ने अपनी तपेदिक से जूझती 12साल की बेटी को स्वास्थ्य लाभ के लिए उत्तराखंड के नैनीताल जिले के पास रामगढ़ की हवादार पहाड़ी पर कुछ महीनों के लिए रखा था । परंतु कुछ ही महीनों में उससे उसने दम तोड़ दिया । टैगोर ने रामगढ़ का प्रवास के दरमियान “शिशु” नाम से अलग अलग उपशीर्षकों वाली एक बहुत लंबी कविता श्रुंखला लिखी थी,1913 में छपी, इस कविता संग्रह का नाम ‘अर्धचंन्द्र’ कर दिया गया था । टैगोर की इस रचना पंकितयों को देखें ।
अंतहीन पृथ्वियों के समुद्रतटों पर मिल रहे है बच्चे ।
मार्गविहीन आकाश मे भटकते है तुफान,
पथविहीन जलधाराओं में टूट जाते हैं जहाज,
मृत्यु है, निबंध और खेलते है, बच्चे अंतहीन पृथ्वियोंके
समुद्रतटो पर बच्चों की चलती है एक महान बैठक ।
इस प्रकार कोरोना की महामारी में भी साहित्य रचनायें हुई होगी, जो उभर कर समाज के सामने आयेगी । समाज में दो प्रकार के व्यक्ति है – एक रचनाकार जो रचना करते है और दूसरे व्यक्ति जो रचनायो को पढते है । इस प्रकार लेखक एवं वाचक, समाज के यह दो भाग है अर्थात, समाज के दो अंग है । जैसे की कोरोना समय दरम्यान मैंने चार लेख विविध विषयो पर लिखा, जिसमें से एक इस वैश्विक महामारी कोरोना के संदर्भ में साहित्य की भूमिका से सम्बन्धित है । इस प्रकार प्रत्येक प्रकार की महामारी के समय में उस समय के विद्धानो ने विविध प्रकार के साहित्य की रचना कीहै । इसी प्रकार निरालाजीने अपनी आत्मकथा “कुल्लीभाट” में 1918को दिल दहला देने वाली फ्लू से हुई मौतो के बारे में लिखा है । जिसमें उनकी पत्नी, एक साल की बेटी और परिवार के कई सदस्यों और रिस्तेदारों की मौत हो गयी थी । निरालाजी ने लिखा है, कि दाह संस्कार के लिए लकडियाँ कम पड जाती थी और जहाँ तक नजर जाती थी गंगा के पानी में इंसानी लाशें ही लाशें दिखाई देती थी । उस बिमारी ने हिमालय के पहाडों से लेकर बंगाल के मैदानो तक सबको अपनी चपेटमें ले लिया था । बेटीकी याद में रचित “सरोजस्मृति” तो हिन्दी साहित्य की एक मार्मिक धरोहर है । भारत के लिए अपितुसम्पूर्ण विश्व के लिए एक सबक लेकर आती है, और वह सबक यह है कि, एक समाज के रूप में हमें बुनियादी आवश्यकताओं के लिए आत्मनिर्भर होने की आवश्यकता है, और इसके लिए हमें एक देशज शिक्षा पद्धति की आवश्यकताहै, जो हमें आत्मनिर्भरता की शिक्षा दे सके ।
कोविड-19 से मुकाबला करने के लिए भारत ने अब तक कई कदम उठाए है। 22 मार्च को देश के लोगो द्वारा जनता कर्फ्यू के दौरान 14 घंटे तक सोशल डिस्टेनसिंग के दो दिन बाद 24 मार्च-2020 को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने सम्पूर्ण देश में लॉकडाउनकी घोषणा की । उनकी घोषणा ने कोविड-19 महामारी के खिलाफ भारत की लडाई को एक नया मोड दे दिया । फिरपांच अप्रैल की रात भारतीयों ने नौ मिनट तक घर की रोशनी बन्द करके मोमबत्ती या दिपक जलाया। ऐसी ही एक महत्वपूर्ण पहल 15 मार्चको की गयी थी । जब श्री नरेन्द्र मोदी ने सार्क देशो के नेताओं के साथ वीडियों कॉन्फ़्रेंसिंग किया था । लॉकडाउन के बाद भारत में कई तरह के उपायों की घोषणा की गयी । राज्य सरकारों ने सिनेमाघर व शैक्षणिक संस्थान बन्द किया एवं सार्वजनिक समारोहों की मनाही कर सोशल डिस्टेंसिंगको लागू किया । लम्बी दूरी की ट्रेनों, उपनगरीय ट्रेनों, मेट्रो और रिक्शा सहित सार्वजनिक परिवहन पर रोक लगा दी गयी तथा दुकाने कारखाने, पूजा स्थल और कार्यालय बंद करदिये गये । भारत आने वाले लोगो के लिए एक महीने के लिए बीजा निलंबित और रद्द किया गया और विदेश से आनेवालों के लिए 14 दिन का क्वारंटीन लागू किया गया । कोविड-19 प्रभावित देशों से आने वाले लोगो के प्रवेश पर रोक लगा दी गयी।अंतरराष्ट्रीय यात्रा पर रोक लगा दी गयी और पडोसी राज्यों की सीमाए भीबंद कर दी गयी । परन्तु इस सभी उपायों में से सार्क की बैठक बुलाने का मोदीजी का निर्णय सबसे महत्वपूर्ण था । इसमोड पर स्वास्थ्य के क्षेत्र में सार्क देशों की उपलब्धियों या विफलतायों पर नजर डालना प्रासंगिक है । अपनी स्थापना के बाद से ही सार्क सबसे कम सफल क्षेत्रीय संगठन सिद्ध हुआ, परन्तु आबादी के हिसाब से यह सबसे बडा संगठन है ।वतमान समय में पूरा विश्वएक गंभीर संकट के दौर से गुजर रहा है । यह समय एक-दूसरे पर दोषारोपण करने का नहीं बल्कि एकजुटता प्रदर्शित करते हुए इस अदृश्य शत्रु से लडने का है । कोरोना सबकी जिन्दगी बदलने वाला है, यह परिवर्तन साहित्य की दुनिया पर भी दिखेगा ।
वस्तुत:साहित्य का संसार मूलरूप से लेखकों, प्रकाशकों और पाठको से मिलकर बनाता है । इसमें लेखक और पाठक जहाँ इसका बौद्धिक क्षेत्र निर्मित करते है, वही प्रकाशकों के लिए इसका वितरण और वाणिज्य महत्वपूर्ण होता है । यदि इनमें से कोई भी एक कडी अपनी भूमिका को लेकर ईमानदार न रहे तो साहित्य का संसार प्रभावित होगा । अब कोरोना वायरस किस प्रकार इस दुनिया में खलबली मचा रहा है, इसे देखना दिलचस्प होगा।कोरोना जैसे संकट का काल रचनात्मकता को एक नई ऊर्जा देता है ।क्यों कि इस दौरान जीवन में व्यापक तौर पर उथल-पुथल होती है । संभव है कि यह काल हिन्दी साहित्य के दृष्टिकोणसे कुछ अनोखा हो जाय, क्योंकि जिस तरह से युवा लेखक अपनी उपस्थिति दर्ज करा रहे है, वह आशा जगाने वाला है । पाठकों के लिए इस नयी दृष्टी को महसूस करने का अवसर होगा । ये दोनों ही दीर्घकालिक प्रभाव वाले बिन्दु है, परन्तु जो पक्ष तत्काल प्रतिक्रिया दे रहा है, वह है प्रकाशक इसी प्रकार वैश्विक महामारी कोरोना के संदर्भ में साहित्य की भूमिका अत्यन्त महत्वपूर्णहै, क्योकि साहित्य ही समाज का दर्पण है, येदोनों एक दूसरे के पूरक है । साहित्य के द्वारा हम ज्ञान को प्राप्त करते है, और नित्य-नवीन जानकारी प्राप्त करते है । हमारा समाज और जीवन यह साहित्य पर निर्भर करता है । परन्तु कभी-कभी आपातकाल जैसी महामारी की स्थिति समस्त विश्व में बन जाती है, जिसमें समाज के सभी वर्ग के लोग प्रभावित होते है । जैसे 26 दिसम्बर 2019 को चीन के वुहान शहर से कोरोना नामक वैश्विक महामारी का प्रारंभ हुआ था, जो आज और अभी तक सभी के जन-जीवन को प्रभावित कर रही है । इस महामारी में साहित्य की भूमिका महत्वपूर्ण है ।
इस वैश्विक महामारी कोरोना अर्थात कोविड-19के अन्तर्गत कई विद्वानों ने अपने लेख, पुस्तके, काव्यो की रचना किया होगा । यह साहित्य कोरोना संदर्भ से लिखा गया होगा । इसी कारण इसे वैश्विक महामारी कोरोना के संदर्भ में साहित्यकी भूमिका कहेगे। यह साहित्य की भूमिका समाज के लिए एक पथदर्शक बनती है । जिसके द्वारा समाज प्रेरणा प्राप्त करके आगे बढ़ता है। इसी प्रकार भूतकाल में‘प्लेग’पर फ्रांसीसी उपन्यासकार अल्जीरियाई ने ‘प्लेग’ उपन्यास लिखाथा। चेचक इन्फुएन्जा, हेजा, तपेदिक आदि बिमारियों पर रबीन्द्रनाथ टैगोर एवं निरालाजी ने साहित्यक योगदान दिया है। इस प्रकार वैश्विक महामारी कोरोना के संदर्भ में साहित्य की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण होती है, क्योंकि समाज-साहित्य का दर्पण है । साहित्य और समाज एक दूसरे के पूरक है । इस प्रकार की महामारी कोरोना में साहित्य की विशेष भूमिका है ।
संदर्भ ग्रंथ सूचि
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डॉ. प्रेमसिंह के. क्षत्रिय, अध्यापक, अहमदाबाद