क्रूर करोना (कविता ) | डाॅ. गयाप्रसाद 'सनेही'
ऐ , कोरोना !
तूने जना है-- कोविड-19 को
अपनी ही कोख से,
कोई भी लिंग हो
लिंग का पता नहीं
किंतु तेरी संतति है-
'प्रलय की प्रतोलिका ' ।
प्रथम लाॅकडाउन से
पेट कुछ भरा नहीं
तू कभी डरा नहीं
दूसरा भी भारत में
अविरल गतिमान है,
तीसरा भी लाॅकडाउन
कर लेंगे सहन हम ,
मन को मसोस कर
बिना आक्रोश के ,
मगर बार-बार सुन
अंतिम हिदायत यह -
चौथे लाॅकडाउन के
श्रीगणेश के पहले ही
''भय बिनु होइ न प्रीति ''
के सुतर्ज पर
सदा-सदा तेरा हम
धूल में मिला देंगे ----
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कलशी…
इस अजूबे वायरस का
नाम दे डाला 'कोरोना '
कर रहा ताण्डव चतुर्दिक
मौत का बनकर खिलौना ।
यह 'कोरोना' नाम अपना
वायरस को खूब भाया ,
इसलिए यह नाम उसने
सूर्य के घर से चुराया ।
प्रोटीन की सींगें उगी हैं ,
इस कोरोना की सतह पर ।
सींग से कलशी सजी है ,
फौत का पैगाम बनकर ।
जो सदा तैयार रहतीं ,
हैं बिखरने को धरा पर ।
पलक झपते बिखर जातीं
संक्रमण की ज्वाल लेकर ।
मौत का साया छिपा है ,
इस कोरोना की सतह पर ।
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भारतीय साहित्य परिषद वोट्सएप ग्रुप से साभार