कोविड-19 काल में बदलती कार्य संस्कृति
सारांश
जानलेवा कोरोना वायरस कोविड-19 के खतरे को देखते हुए भारत सहित विश्व के सभी देश आपस में इससे बचाव कैसे हो सकें? इसका ज्ञान साझा कर रहे हैं। पिछले कुछ माह पहले लाक डाउन और बाद में अनलाक डाउन के काल में कोविड-19 नामक संक्रामक विश्वव्यापी बीमारी ने न सिर्फ जन-जीवन के हर हिस्से को प्रभावित किया है, बल्कि पर्यावरण के विभिन्न क्षेत्रों को प्रभावित किया है। इस काल में विकास के लिए कार्य पद्धति में भी बदलाव देखने में आया है।
प्रस्तावना
कोविड-19 का शाब्दिक अर्थ है CO का अर्थ कोरोना (Corona), VI का अर्थ है (Virus), D का अर्थ है डिसिस (Disease) और 19 अर्थ है वर्ष 2019 का। पिछले वर्ष के अंतिम माह जानलेवा कोरोना वायरस चीन से पूरी दुनिया में फैलने की बात आई। हुवेई प्रांत, जहां से वायरस फैला, वहां के अधिकारियों पर आरोप लगा कि उन्होंने इस वायरस को गंभीरता के साथ नहीं लिया या फिर जानबूझ कर छिपाया गया। देर से सूचना प्रदान करने का कारण गैर-जिम्मेदाराना रवैया था। चीन सरकार ने स्थानीय अधिकारियों की बात पर ध्यान नहीं दिया, जब तक सरकार समझ पाती रोकने के मार्ग में कई जटिलताएं पैदा हो गई थी। गलती तो केन्द्रिय नेतृत्व की थी या हुवेई के अधिकारियों की जो वायरस को काबू करने को लेकर लापरवाही बरतते रहे। 20 जनवरी को जिनपिंग ने पहली बार सार्वजनिक तौर पर वायरस के फैलने पर चुप्पी तोड़ी और इसे रोकने के लिए कठोर प्रयास करने के निर्देश जारी किया।
कोविट-19 के खतरे को देखते हुए विश्व के सभी देश अपने-अपने स्तर पर इसकी दवाई बनाने का प्रयास कर रहे हैं। साथ ही इससे बचाव कैसे हो सके, इस विषय पर चर्चा साझा कर रहे हैं।
कोरोना के लक्षण
सर्दी-खांसी होना
बुखार होना (तापमान बढ़ना)
गले में खराश होना
सांस लेने में तकलीफ होना
शरीर में अकड़न या दर्द का होना
कुछ लोगों में किसी प्रकार के लक्षण नहीं दिखने के बाद भी कोरोना पाजिटिव का पाया जाना।
कोरोना से बचने के उपाय
अपने हाथों को साबुन से करीब 20-30 सैकंड तक अवश्य धोएं।
अपने हाथों को अपने चेहरे से दूर ही रखें।
बहुत जरूरी न हो तो घर से बाहर न जायें।
जहां तक हो सके सार्वजनिक स्थानों पर जाने से बचें।
हमेशा मास्क का उपयोग करें।
लोगों में 5-6 फीट की दूरी बनी रहे।
उचित मात्रा में सेनिटाइजर का प्रयोग करें।
अपने रोग प्रतिरोधक क्षमता को बेहतर करने का प्रयास करें।
सरकार द्वारा दिये गये सुझावों का पालन करें।
कोविड-19 काल एवं बदलती कार्य संस्कृति
कोरोना महामारी फैलने के पहले भारत में भी आईटी कम्पनियों में ’वर्क फ्राम होम’ का चलन था। दरअसल पिछले कुछ सालों से घर से काम करने का चलन बढ़ रहा है। काम कहां से करना है, इसके साथ ही काम करने के तरीकों में भी बदलाव आया है। नित नए सम्प्रेषण साफ्टवेयर विकसित हो रहे हैं, जो बेहतर से बेहतर दृश्य अनुभूति करवाने वाले हैं। दूरस्थ माध्यमों के बीच सम्प्रेषण और संवाद को प्रभावी बना रहे हैं। गौरतलब है कि आफिस में भी यही तकनीक इस्तेमाल की जाती है। इस प्रकार से काम करने के लिए मूल रूप से एक विश्वसनीय और सुरक्षित ब्राडबैंड इंटरनेट कनेक्शन की आवश्यकता है, जिसकी सहायता से विभिन्न साफ्टवेयर के जरिये वीडियो कान्फ्रेंसिंग की जा सके। हालांकि जहां तक भारत में ‘वर्क फ्राम होम’ संस्कृति की स्वीकार्यता केवल आईटी कम्पनियों और नए स्टार्ट एप्स तक ही सीमित रह गई है। ‘वर्क फ्राम होम’ संस्कृति से समाज व अर्थव्यवस्था को भी लाभ होगा, क्योंकि इसकी वजह से सड़कों पर आवागमन कम होगा। इससे प्रदूषण तो कम होगा ही, साथ ही यातायात सम्बन्धी समस्याएं भी कम होंगी। ईंधन ऊर्जा की भी बचत होगी।
यद्यपि सभी क्षेत्रों के लिए ‘वर्क फ्राम होम’ को व्यावहारिक नहीं माना जाता लेकिन अब भी यह केवल कुछ विशिष्ट प्रकार की गतिविधियों में ही वैकल्पिक व्यवस्था के तौर पर अपनाई जा रही है। इस प्रकार की कार्य व्यवस्था ज्ञान आधारित और आईटी से सम्बन्धित सेवाओं के लिए उपयुक्त है या जब कर्मचारी स्वयं कार्यालय में नहीं आ सकते तब। अगर काम इस तरह का है जो स्वतंत्र है अथवा आपसी विचार-विमर्श की अधिक आवश्यकता नहीं है, जैसे आईटी क्षेत्र।
‘वर्क फ्राम होम’ के तमाम फायदों के बीच कम्पनियों के समक्ष वर्क फ्राम होम लागू करने के मार्ग में कुछ चुनौतियां भी हैं। घर पर कामकाज के दौरान हो सकता है कर्मचारियों के आपसी संवाद के अभाव में स्वयं को कार्यस्थल से अलग-थलग महसूस करेंगे। इसलिए नई व्यवस्था को लागू करने के लिए कम्पनियों को अपनी कार्य संस्कृति और प्रबन्धन में बदलाव की आवश्यकता पड़ेगी। साथ ही कर्मचारियों को र्का करने की पूर्ण स्वतंत्रता प्रदान करनी होगी।
कोविट-19 काल: प्रभावित होने वाले क्षेत्र
कोविड-19 नामक संक्रमण विश्वव्यापी बीमारी ने जन-जीवन के हर हिस्से को प्रभावित किया-
शिक्षा का क्षेत्र- विद्यार्थी जहां 6 फुट चैड़े श्यामपट्ट पर केन्द्रित रहने वाले अब 16 इंच के लेपटाप के स्क्रीन एवं मोबाइल के 6 इंच के स्क्रीन पर केन्द्रित हो गए हैं। इसके लिए जितने भी आनलाइन शिक्षण अधिगम के प्लेटफार्म हैं चाहे जूम हो, गुगल मीट, या सिस्को वेबेक्स हो। ये सभी मंच आनलाइन शिक्षा ज्ञान के विकास के होड़ में लगे हैं। शिक्षक एवं छात्र दोनों अपने-अपने घरों में रहते हुए इस कार्य को संपादित कर रहे हैं अर्थात् ‘‘वर्क फ्राम होम’’ की कार्य संस्कृति विकसित हो रही है। ऐसा लग रहा है कि यह आनलाइन शिक्षा लाकडाउन में अचूक औषधि का काम कर रही है। इसमें न ही स्कूली कमरों या उसकी छतों की चिंता, न ही श्यामपट्ट एवं बेंच की, न ही शिक्षक एवं विद्यार्थी को समय पर स्कूल पहुंचने की चिंता। ऐसा लग रहा है कि आनलाइन शिक्षा ‘‘शिक्षा जगत’’ में मोक्ष जैसी स्थिति उत्पन्न हो गई है।
आर्थिक क्षेत्र- कोरोना महामारी फैलने से आर्थिक जगत भी अछूता नहीं रहा। उद्योग जगत के कम्पनियों ‘‘वर्क फ्राम होम’’ एवं 50% कर्मचारियों के साथ खोलने का दिशा निर्देश जारी हुआ। इससे सामाजिक दूरी सुनिश्चित करने के साथ-साथ कर्मचारियों को घर से कार्य करने की अनुमति दे दी गई। ‘वर्क फ्राम होम’ से कर्मचारियों को कार्यस्थल पर समय से जाने की चिंता न रही और न ही ट्रैफिक की। वहीं कम्पनियों को आफिस प्रबन्धन एवं प्रशासन का खर्च कम हो गया। अर्थात् कम्पनियों को पार्किंग, फर्नीचर, आधारभूत ढांचा सुविधाएं एवं परिवहन सुविधाओं का खर्च कम हुआ। ‘वर्क फ्राम होम’ की संस्कृति से कम्पनियों को काफी फायदा हुआ।
पर्यावरण क्षेत्र- कोविड-19 के काल में (लाकडाउन) में ‘वर्क फ्राम होम’ की संस्कृति ने पर्यावरण के क्षेत्र को भी प्रभावित किया है। इसकी वजह से सड़कों पर आवागमन कम हुआ, जिससे प्रदूषण तो कम हुआ ही यातायात सम्बन्धित समस्या भी कम हुई। लाकडाउन के दौरान छोटी-छोटी कम्पनियां कुछ दिनों के लिए बंद हुई, जिससे निकलने वाला कचरा कम हुआ। नदियों के पानी की शुद्धता का स्तर अच्छा हुआ, साथ ही साथ हवा में प्रदूषण की मात्रा भी कम हुई।
स्वास्थ्य के क्षेत्र में- कोविड-19 के काल में (लाकडाउन) लोगों को अपने-अपने घरों में रहना पड़ा। इस दौरान लोगों ने अपने स्वास्थ्य के प्रति (टी.वी., दैनिक समाचार एवं विभिन्न सोशल मीड़िया द्वारा) काफी जागरूक हुए। अपने शरीर की रोग-प्रतिरोधक क्षमता के विकास के लिए काफी प्रयास किया गया। लोग यथासंभव घर का खाना, ताजा एवं गरम खाना और रोग-प्रतिरोधक क्षमता के विकास के लिए घरेलू नुस्खे (हल्दी, गोल मिर्च, तुलसी के पत्ते, गिलोय, अजवाइन, दालचीनी आदि) का प्रयोग किया गया। साथ ही स्वास्थ्य को बनाए रखने के लिए योगाभ्यास भी किया जाता रहा क्योंकि इस समय घर में उनके पास समय की उपलब्धता थी।
शौक के विकास में- कोविड-19 के काल (लाकडाउन) में लोग अपने-अपने घरों में रह कर तरह-तरह के अपने शौक को पूरा कर रहे हैं। जो अपने जीवन के व्यस्ततम समय में अपने शौक को पूरा नहीं कर पाए वे इस काल में अपने घरों में रहते हुए काफी अच्छा कार्य सम्पादित किया। जैसे- चित्रकारी, पाकशाला में कार्य, संगीत का अभ्यास या कोई वाद्य यंत्र का अभ्यास आदि। कुछ लोगों ने ‘वर्क फ्राम होम’ के तहत इस तरह एक कलाकार के व्यक्तित्व का विकास हुआ।
साहित्य के क्षेत्र में- कोविड-19 के काल में (लाकडाउन) साहित्य का क्षेत्र भी काफी प्रभावित हुआ है। इस समय कलमकारों ने अपने घरों में रहकर साहित्य विकास के क्षेत्र में काफी कार्य किया है। इस काल में कथाकार, लेखक एवं साहित्यकार ने अपनी नई रचनात्मक कार्यों को सम्पन्न करने का मौका मिला है। हमने भी इस दौरान लेख लिखने का कार्य सम्पन्न किया।
उपरोक्त सभी क्षेत्रों में सकारात्मक प्रभाव पड़ा, इसके पीछे ‘‘वर्क फ्राम होम’’ की संस्कृति रही है। इसके दूसरे पहलू में नकारात्मक प्रभाव भी देखने को मिले हैं। इस काल में अनेक लोगों की नौकरियां छूटी और अनेक लोगों को अपने गांव-घरों की ओर पलायन भी करना पड़ा, जबकि होना यह चाहिए था, कि जो इस कोरोना काल में जहां है वे वहीं रूके रहें। इसके बचाव के लिए उचित उपाय वहीं पर किए जाएं ताकि इसके फैलाव को रोका जा सके। सरकार की तरफ से समय-समय पर इससे सम्बन्धित बचाव के दिशा-निर्देश दिया जाता रहा है, उसका पालन भी हुआ। हाल में ही प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने ‘‘गंदगी भारत छोड़ो’’ का नारा दिया। अर्थात् एक कदम स्वच्छता की ओर बढ़ने की बात कही। जब तक कोविड-19 की दवा अथवा टीका नहीं बन जाता, तब तक, इसके बचाव के उपाय सावधानी के रूप में अपनाने होंगे।
सन्दर्भ:
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डा. जय प्रकाश सिंह, दूरस्थ शिक्षा निदेशालय, जैन विश्वभारती संस्थान, लाडनूं (राज.) मो. नं. 9982485775