Included in the UGC-CARE list (Group B Sr. No 172)
बदलते संदर्भ में दूरदर्शन में हिन्दीः दशा एवं दिशा

सारांशः-

प्रस्तुत शोध आलेख बदलते संदर्भ में दूरदर्शन में हिन्दी के संबंध में विश्लेषण का एक प्रयास है। दूरदर्शन आधुनिक संचार माध्यम का एक सशक्त, जीवंत और युवा माध्यम है। आज इसके सम्मोहन से पूरी मानव जाति प्रभावित हो चुकी है। इसके द्वारा शिक्षा, सूचना, सांस्कृतिक गतिविधि या मनोरंजन का कार्य मुख्य रुप से किया जाता है। आज घर बैठे ही हम क्रिकेट वल्र्ड कप, ऑपरेशन अभिनंदन, फुटबाॅल मैच, कारगिल अभियान, अमेेरिका या चीन की तत्कालिक वस्तुस्थिति का आँखों-देखा हाल तुरंत जान लेते हैं। इसके लिए जब हम विभिन्न भाषा माध्यमों की बात करें तो निस्संदेह हिन्दी सर्वाधिक उपयुक्त माध्यम प्रतीत होती है। दूरदर्शन और हिन्दी के बीच अन्योन्याश्रय संबंध माना जा सकता है। वस्तुतः दूरदर्शन को अपनी लोकप्रियता बढ़ाने के लिए हिन्दी की आवश्यकता है और हिन्दी को घर-घर तक पहुँचाने के लिए दूरदर्शन की। दूरदर्शन ने हिन्दी को जन-जन तक पहुँचाया है, इसके विविध रुपों से हमारा परिचय करवाया है। यद्यपि आज हिन्दी का नया रुप ‘हिंग्लिश’ दूरदर्शन के माध्यम से पैर पसारता दिखाई दे रहा है। इसके कारण शायद तेजी से हिन्दी की लोकप्रियता विश्वस्तर पर बढ़ी है, पर इससे हिन्दी के अस्तित्व के लिए खतरे की गुंजाइश बहुत नहीं मानी जा सकती, क्योंकि कोई भी भाषा अपने लिखित रुप में ही संरक्षित रहती है।

कुंजी शब्दः- हिन्दी, दूरदर्शन, जनसंचार माध्यम, हिंग्लिश, संदेश |

प्रस्तावना :

‘‘हिन्दी को जन-जीवन के बीच पहुँचाने में अन्य संचार साधनों की तुलना में दूरदर्शन इन दिनों सबसे प्रभावी साधन सिद्ध हुआ है। हिन्दी को जन-जन तक पहुँचाने में इसके योगदान को नकारा नहीं जा सकता है।‘‘[1] हिन्दी का सर्वाधिक प्रयोग दूरदर्शन के विज्ञापनों में नजर आता है, जिसे देखकर लगता है दूरदर्शन से प्रसारित विज्ञापन में तो हिन्दी के लिए कोई विकल्प नहीं।‘‘[2] मानो सूत्र सा बन गया है कि ‘हिन्दी नहीं तो विज्ञापन नहीं।’ लाखों-करोड़ों के हृदय, मन और मस्तिष्क पर हावी होनेवाले लक्स, लिरिल या संतुर जैसे साबुन हो अथवा कोलगेट, सिबाका या पेप्सोडेंट जैसे टूथपेस्ट सबके सब अपने-अपने कारखानों और दुकानों में ‘हिन्दी के बिना बंदी’ है।‘‘[3]

दूरदर्शन में हिन्दी का स्वरुपः-

  1. दूरदर्शन की हिन्दी में ज्यादातर अंग्रेजी व क्षेत्रीय बोली के शब्दों का प्रयोग रहता है। इसे हम दूरदर्शन के विविध प्रसारणों में देख सकते हैं।
  2. दूरदर्शन की हिन्दी के रुप में पूरी तरह मानक हिन्दी के प्रयोग स्वीकार नहीं किया जा सकता, क्योंकि इसमें विविध कार्यक्रम देश और विदेश की पृष्ठभूमि में जन-जन से जुड़े होते हैं।
  3. दूरदर्शन की भाषा में संगीतात्मकता भी होती है। ‘‘यहाँ भाषा से संगीत तत्व भी जुड़ा रहता है, फिल्मों में मार-धाड़, संगीत के साथ होती है, एक लय में होती है, उसी तरह वह दिन दूर नहीं जब फिल्मी दुनिया के संगीतमय मनोरंजक समाचारों की तरह अन्य राजनीतिक-आर्थिक सामाजिक, अपराधिक समाचार भी या दुर्घटनाओं के समाचार भी एक ‘संगीत’ के साथ लययुक्त ढ़ंग से देखने-सुनने को मिले।“ [4]
  4. दूरदर्शन के लिए संवादों में शब्द चयन पर भी सर्तकता बरतनी पड़ती है। यहाँ हमें उन्हीं शब्दों का सहारा लेना पड़ता है जो दृश्य को ज्यादा प्रभावकारी बना सकते हैं। भाषा में ध्वनि और संवाद दोनों के प्रभाव को देखना पड़ता है।
  5. आज दूरदर्शन पर एक नई हिन्दी का प्रचलन तेजी से हो चला है, जिसे हम ‘हिंग्लिश’ कह सकते हैं।
  6. ‘‘किसी-किसी चैनल में यह हिन्दी एक विशेष नाटकीयता के साथ-साथ, जान-बूझकर अंग्रेजी शब्द घुसेडकर बोली जा रही है, तो कुछ चैनल बहुत अच्छी जानी-पहचानी लोक-स्वीकृत हिन्दी का प्रयोग कर रहे हैं। उदाहरणस्वरुप जी0टी0वी0 में जहाँ आवश्यकता न होने पर भी सायास ढ़ंग से अंग्रेजी के शब्द मिलाये जाते हैं, वहीं स्टार प्लस पर दिए जाने वाले समाचार प्रचलित हिन्दी को सहज ढ़ंग से अपनाकर चलते है।‘‘[5]
  7. समग्र रुप दूरदर्शन की हिन्दी का अवलोकन करने पर यह स्पष्ट होता है कि दूरदर्शन की हिन्दी चित्रात्मक, संक्षिप्त और संभाषणशील होनी चाहिए, क्योंकि इसमें शब्दों का कम प्रयोग करते हुए चित्रों को अधिक से अधिक बोलने का अवसर दिया जाता है।
  8. दूरदर्शन पर विभिन्न कार्यक्रम दिखाए जाते हैं, जैसे-धारावाहिक, फिल्म, विज्ञापन, भक्ति आधारित कार्यक्रम, खेल कार्यक्रम, समाचार आदि। सभी कार्यक्रमों में हिन्दी भाषा की संरचना और प्रस्तुतीकरण अगल-अलग ढ़ंग की होती है।
  9. दूरदर्शन विज्ञापन के लिए हिन्दी में निर्धारित समयावधि में संक्षिप्त किन्तु सक्षम उल्लेख के गुण को दर्शाती है। आजकल इस हिन्दी में ‘हिंग्लिश’ का प्रयोग बहुलता से किया जाता है, जैसे-एक कोल्ड ड्रिंक के विज्ञापन में कहा जाता है ‘ये दिल मांगे मोर’। इसमें पूर्वाग्रह से अलग हटकर सहजता और सरलता का गुण होना चाहिए कि दर्शक एक बार के अपील में ही उल्लेखित उत्पादन की गुणवत्ता का परिचय पा सके।
  10. खेल कार्यक्रमों, जैसे-क्रिकेट के मैदान में कमेंटेटर को बहुत ही कम किन्तु नपे-तुले शब्दों का प्रयोग करना पड़ता है। शब्दों की जरुरत वहीं महसूस होती है, जहाँ दृश्य का प्रभाव कम हो जाता है। यह केवल खेल कार्यक्रमों की ही नहीं बल्कि दूरदर्शन के सभी कार्यक्रमों के लिए लागू है।

‘‘दूरदर्शन वर्तमान युग में संचार माध्यम का सबसे बड़ा माध्यम है, जिसके द्वारा आज मानवीय संवेदनाएँ तत्काल संसार के एक कोने से दूसरे कोने में प्रकट हो जाती है, और भावनाओं के इस समुद्र को उजागर करने में आज का सबसे बड़ा सशक्त माध्यम दूरदर्शन है।‘‘[6] जब हम हिन्दी भाषा के प्रचार-प्रसार में दूरदर्शन की भूमिका की बात करते हैं तो यह अन्य आधुनिक संचार माध्यमों की तुलना में सबसे अधिक प्रभावी माध्यम है। इसने समाज के सभी वर्गों शिक्षित-अशिक्षित, अनपढ़-सुपढ़, गरीब-अमीर, ग्रामीण-शहरी हर वर्ग तक हिन्दी को पहुँचाया। आज हिन्दी का ही सम्मोहन है कि यह चैनलों की टी0आर0पी0 को इतनी तीव्र गति से आगे बढ़ाती दृष्टिगोचर होती है। व्यक्ति अपने व्यक्तिगत अनुभवों, विचारों को हिन्दी के साथ मजबूती से जोड़ा है। आज ‘डिस्कवरी चैनल’ तथा अन्य लोकप्रिय या ज्ञानवर्द्धक विदेशी भाषाओं के कार्यक्रमों का हिन्दी संस्करण हम तक आसानी से पहुँच पा रहे हैं। उच्च गुणवत्ता वाले शैक्षिक कार्यक्रम भी हिन्दी में प्रसारित हो रहे हैं। दूरदर्शन पूरे विश्व की घटनाओं का प्रतिक्षण सीधा प्रसारण कर सकता है। ‘‘वैश्विक स्तर पर जनसंचार की जो प्रक्रिया है, उसमें हिन्दी भाषा का प्रमुख योगदान है। हिन्दी अब एक विश्वभाषा के रुप में विकसित हो रही है। भाषायी दृष्टि से देखा जाए तो विश्व में हिन्दी जाननेवालों की संख्या दूसरे स्थान पर है। 1999 में मशीनी अनुवाद सम्मेलन में टोकियो विश्वविद्यालय के प्रो0 होजूमि तनाका ने जो भाषायी आंकड़े प्रस्तुत किए थे, उनके अनुसार विश्व भर में चीनी बोलने वालों का स्थान प्रथम और हिन्दी का द्वितीय है। अंग्रेजी तीसरे स्थान पर रह जाती है।‘‘[7] दूरदर्शन पर वैश्विक प्रसारण में हिन्दी प्रमुख भाषा बन चुकी है। विदेशी भाषाओं की फिल्में हिन्दी में डब करके दिखाई जा रही है और कमाई के मामले में सारे रिकार्ड ध्वस्त कर रही है। अभी हाल ही में ‘एवेंजर्सः इनफिनिटी वार’ या ‘एवेंजर्सः द एण्ड गेम’ ने अपने हिन्दी संस्करण में कमाई का नया कीर्तिमान बनाया। ‘‘जनसंचार के माध्यम से जो संदेश प्रसारित होते हैं वे सिर्फ संदेश ही नहीं होते, सांस्कृतिक संदेश होते हैं और उनका उपयोग संप्रेषण के रुप में होता है। हर दिन, हर सप्ताह-अखबार, रेडियो और टेलीविजन हमारे सामने उन घटनाओं से संबंधित शब्दों, बिंबो, सूचनाओं और विचारों को प्रवाहित करते रहते हैं, जो हमारे निकटस्थ सामाजिक परिवेश के परे घटित होते हैं। फिल्म और टेलीविजन कार्यक्रमों पर जो दृश्य दिखाए जाते हैं वे उन लाखों-लाख व्यक्तियों के लिए एक समान संदर्भ बन जाते हैं, जिनका एक-दूसरे से कोई संपर्क नहीं होता, वे एक संस्कृति में भाग लेकर एक समान अनुभव, एक सामूहिक स्मृति के भागीदार बन जाते हैं। थांपसन के अनुसार, जनसंचार ने उन हजारों साल पुराने रुपों को भी लोगों तक पहुँचाया जिनको इससे पहले कभी इतने बड़े पैमाने पर उपलब्ध कराना मुमकिन नहीं हो सका था। हमारे सामने ‘रामायण’ और ‘महाभारत’ का उदाहरण मौजूद है, जिनको टेलीविजन सीरियल के कारण करोड़ों लोगों तक पहुँचाया जा सका। इनमें से ज्यादातर लोगों को शायद ही इन महाकाव्यों को पढ़ने का मौका मिल पाता।‘‘[8] आज दूरदर्शन के माध्यम से हिन्दी भाषा मुनाफा कमानेवाली कमाऊ भाषा के रुप में नजर आ रही है। ‘‘जनसंचार के माध्यमों द्वारा जो संदेश सम्प्रेषण होता है, लोग उन्हें समूह या परिवार वालों के साथ देखते हैं। हिन्दी भाषा का जो रुप दृश्य श्रव्य जनसंचार माध्यमों द्वारा प्रचारित किया जा रहा है, उसका प्रभाव स्थायी होता है। भले ही लिखित या मुद्रित रुप में हिन्दी भाषा अपने वास्तविक स्वरुप में हो, लेकिन दृश्य-श्रव्य माध्यमों द्वारा प्रसारित हिन्दी भाषा का प्रभाव बढ़ता ही जा रहा है।‘‘[9]

निष्कर्षः-

बदलते संदर्भ में दूरदर्शन में हिन्दी एक लोकप्रिय और सशक्त भाषा माध्यम बन चुकी है। यद्यपि कुछ खामियाँ भी दृष्टिगोचर होती है, जैसे- हिंग्लिश’ के बढ़ते प्रभाव से यदा-कदा मन सशंकित होता है कि कहीं हिन्दी का मूल अस्तित्व खतरे में न पड़ जाय, पर हमें इस शंका का परित्याग कर देना चाहिए क्योंकि किसी भाषा का मूल रुप उसके लिखित स्वरुप में ही संरक्षित रहता है। आज जब हिन्दी विश्वभाषा के रुप में अपनी पहचान बना रही है तो हमें भी उसके इस नये रुप का स्वागत पूर्ण उत्साह के साथ करना चाहिए। हिन्दी एक वैज्ञानिक भाषा है। विभिन्न भाषाओं और बोलियों के शब्दों को ग्रहण और आत्मसात करने की इसमें बेजोड़ क्षमता है। यदि हम हिन्दी के प्रयोग में पूर्वाग्रह से ग्रसित होंगे तो फिर कहीं इसका भी हश्र संस्कृत भाषा की तरह ही न हो जाय। एक सीमित क्षेत्र तक ही इसका दायरा न कहीं सिमट कर रह जाय। हिन्दी के प्रख्यात लेखक काका कालेलकर ने सही कहा था ‘‘हिन्दी का भावी स्वरुप सर्वग्राही, सर्व समन्वयी होगा और हिन्दी का यह सर्वग्राही रुप उसकी प्रकृति, उसकी सहजता, सरलता में ही निहित है।’’ दूरदर्शन की भाषा के रुप में हिन्दी का भविष्य उज्ज्वल प्रतीत होता है।

संदर्भ ग्रंथ सूचीः-

  1. मीडियाकालीन हिन्दीः स्वरुप और संभावनाएँ- डॉ अर्जुन चव्हाण, पृष्ठ सं0- 50
  2. वही पृष्ठ सं0- 51
  3. ‘उपलब्धि’ पत्रिका, अक्टूबर 1997, पृष्ट सं0- 63(डॉ अर्जुन चव्हाण के शोध-निबंध से उद्द्यत)
  4. आधुनिक जनसंचार और हिन्दी- प्रो0 हरिमोहन- पृष्ठ सं0- 82
  5. मीडियाकालीन हिन्दीः स्वरुप और संभावनाएँ- डॉ अर्जुन चव्हाण, पृष्ठ सं0- 52
  6. इलेक्ट्रनिक मीडिया और बाल विकास- डॉ योगेश कुमार पाण्डेय, पृष्ठ सं0- 41, 42
  7. विशिष्ट साहित्यिक एवं प्रतियोगी निबंध सम्पादक- डॉ भगवान शरण भारद्वाज, पृष्ठ सं0- 627
  8. जनसंपर्क एवं पत्रकारिता की अवधारणा एवं विकास- प्रथम पत्र- स्नातकोगत्तर- पत्रकारिता एवं जनसंचार पाठ्यक्रम- नालंदा खुला विश्वविद्यालय- पृष्ठ सं0- 52
  9. इलेक्ट्रनिक मीडिया और बाल विकास- डॉ योगेश कुमार पाण्डेय, पृष्ठ सं0- 25, 26M


डॉ पूजा झा, माध्यमिक शिक्षिका, इण्टरस्तरीय श्याम सुंदर विद्या निकेतन, आदमपुर, भागलपुर-812001, बिहार. ईमेल- झापूजा००४@जीमेल.काॅम दूरभाष संख्या- +91-9199519779