(विजय सोनी की मूल गुजराती कहानी 'वृद्ध रंगाटी बाज़ार' का हिन्दी अनुवाद)
चैत्रमाह की धूप बहुत तीव्रता से अपना प्रभाव दिखा रही थी। धूप मांजे की तरह शरीर में चुभ रही थी। गायें निर्जन रास्ते पर शरीर फैला कर बैठी थी। पंछियों को तो मानों जैसे धूप गलाकर पी गई हो। एक-दो गौरिया टेलिफोन वायर पर झूलती हुई गूंगी बनकर रास्ता ताकती रहती। सोने जैसा लगने वाला रास्ता पीली-पीली धूप में घुलकर पीतल बन गया था।
लाल आँखों वाले सिंदूरिया हनुमान एक पैर पर पूरा रंगाटी बाजार ताकते हुए बैठे है। नीले आसमान में पतली रेखा, रंगाटी बाजार को दूध पीता बच्चा चिपका रहे उस प्रकार चिपक रही है। सिंदूरिया हनुमान की आँखें जहाँ पहुँचकर टकराती है उसके दूसरे छोर पर, काजी की पथ्थर वाली मस्जिद है। इस काजी की छत पर बच्चे बारह मास पतंग उड़ाते हैं। मस्जिद के एक भाग में छोटे बच्चे कपड़े की थैली में कुरान लेकर पढ़ने आते हैं। पथ्थर वाली मस्जिद की फर्श कुरान की आयातों से फरफर घूमती रहती है। अल्लाह पत्ते की तरह हवा में झूलते है।
पूरे सीधे रास्ते के दोनों तरफ टेढ़े हो चुके वृद्ध मकान हैं। जिनमें से बरसाती भीनी लकड़ियों की बास आती रहती है। मकान की दीवारें फाड़कर पीपल के पत्ते झांकते हैं। इन मकान के दरवाजे पर हर साल नगरपालिका वाले रथयात्रा से पहले: यह मकान भयजनक है, ऐसी सूचना लाल अक्षरों में चिपका जाते है।
सीधी लाइन के रंगाटी बाजार पर एक नौ घर का महल्ला है। पहले उस महल्ले में नौ घर थे। आज वह महल्ला मोटी गर्भवती स्त्री के पेट की तरह फूल गया है। घर एक दूसरे को चिपकते हुए सहारा लेकर खड़े हैं। कम तनख्वाह की नौकरी वाले अधेड़ जैसा एक घर थोड़ा दूर खड़ा है। लकड़ी की खिड़की में से रमली ने नीचे झांककर देखा। रंगाटी बाज़ार पर एक नजर घुमाई। पूरा बाज़ार सुनसान पड़ा था। कर्फ्यू खुलने में अभी डेढ-दो घंटे का वक्त था। रास्ता सत्रह दिनों से साफ किए बिना बहुरूपी के चिथड़े जैसा हो गया था। रमली सुनसान रास्ते को देखती रही। देखते ही देखते सत्रह दिन हो गए! किसी ने बताया था: "गाड़ी का पूरा डिब्बा जला दिया था, इंसानों के साथ। छोटे बच्चे भी थे।" रमली का हाथ अचानक से पेट पर चला गया। कैसा होता होगा? शरीर थोड़ा भी जल जाए तो रहा नहीं जाता, और यह तो जिंदा जल जाना!
जलाने वाले भी कैसे? इंसानों को जरा भी दया नहीं? कौन से जन्म में यह सब चुकाएंगे?
रमली सोच रही थी।
सत्रह दिन हो गए, रमली ने नीचे साँकल से बंधा हुआ ठेला देखा। ठेले पर कुत्ते खेल रहे थे। दो पट्टियों की दरार में से कहीं-कहीं धनिए के पत्ते दिख रहे थे। पहियों में से हवा तो कब की निकल गई थी। पंचर भी हो सकता है! सब नए सिरे से कराना पड़ेगा। उसे आलस चढ़ी : पता नहीं कब ठेला लेकर जा पाऊंगी?
सुबह खाना बनाकर जाती तब कनु सोया रहता, शाम को वापस आती तब घर में न होता।
घर में मानों जैसे वह होता ही नहीं।
रमली को लगता कि कनु और बुढ़िया - इस घर में अनंत काल से साथ में हैं। रात को कनु आकर कब बाहों में लिपट जाता उसका पता न चलता। एक कमरे में बीच में पर्दा फफडता रहता। दूसरी ओर बुढ़िया की बडबड भंवरे की तरह गुनगुन होती रहती। रमली ने पीछे मुड़कर बुढ़िया की ओर देखा। बुढ़िया को ज्यादा दिखता नहीं था लेकिन जुबान आरी की तरह चलती! बुढ़िया की आँखें बंद थी। कुछ बड़बड़ा रही थी, भगवान का नाम या बीते सालों का लेखा-जोखा। बुढ़िया के चेहरे पर अर्ध मृत बल्ब का प्रकाश पड रहा था। झुर्रियों से भरी हुई बुढ़िया अंधेरे में डरावनी लग रही थी। रमली ने बुढ़िया पर से नजर हटाई। खिड़की के बाहर देखने लगी। इस बार कर्फ्यू में दिन लंबा हो गया था। भूख ज्यादा लगती। आसमान में धुआं उठता रहता। हवा में बार-बार चमड़े जैसा कुछ जलने की बदबू आती रहती।
पुलिस की गाड़ी चक्कर लगाकर गई। दोपहर को चार से सात के कर्फ्यू में छुट्टी मिली थी। महल्ले में चहल-पहल शुरु हुई। रमली बरतन सही करने में लग गई। खाली खनकते डिब्बों में से भूख की आवाज आ रही थी, उसका जी अटक गया। भूख हो या भय- उसका पेट गुड़गुड़ा रहा था। उसने पेट पर हाथ घुमाया, अभी टांके दुख रहे थे। घर में दूध-सब्जी-घासलेट सब कम होता जा रहा था। प्राइमस जलाकर काली चाय बनाई। बुढ़िया चुपचाप पी गई।
दिख रहा है वह नाकें पे? बुढ़िया ने चिंता के साथ रकाबी आगे रखी। उसे बुढ़िया को दांत से काटने का, कनु को गाली देने का मन होता लेकिन कुछ बोली नहीं। गरम काढा मुँह में चिपक गया। चुप-चाप पी लेती हो तो, बुढ़िया मर भी नहीं रही। दोबारा कहाँ याद दिलवाया? गुस्सा आया। विचार दीमक की तरह सीधी रेखा में आगे बढ़ते गए। दोबारा खिड़की के बाहर नजर डाली। पथ्थर वाली मस्जिद का गुंबद दिख रहा था। छोटी सी टोली खड़ी थी। बीती रात जैसी नहीं।
पत्थरबाजी बीती शाम से ही शुरू हो गई थी। मस्जिद के पीछे से जलते हुए अगनशीशे आ रहे थे। तेजाब से भरी हुई बोतलें बाती जलाकर लड़के फेंकते, वह पैरों के पास आकर फूटती। इस ओर से कनु और गली के लड़को की टोली ईंट-पत्थर के टुकड़े फेंकते। महल्ले की गटर के लोहे के ढक्कन भी काजी के छत पर पहुँच गए थे। कल कनु को गुस्सा आया। गुप्ती लेकर सामने वालों की टोली में घुस गया। शर्ट निकाल कर रास्ते के बीचो बीच बैठ गया। जोर-जोर से चिल्लाता गया। गालियों की बरसात के साथ सामने वाले एक-दो को उसने ढेर कर दिया था। टोली के लोग घबरा कर भाग गये। लेकिन कनु महल्ले में किसी की छत पर चढ़ गया था। उसने चक्की का पहिया पुलिस की गाड़ी पर फेंका। पुलिस को गुस्सा आया। टियर गैस छोड़ना शुरू किया। आँखें सूज कर बड़बट्टे जैसी लाल हो गई। महल्ले में सब कनु की हिम्मत को शाबाशी दे रहे थे।
शराब पी ली होगी और क्या? रमली मन में बड़बड़ाई। वरना टोली में घुस जाए और वह भी गुप्ती लेकर? अगर कोई मर्द का बच्चा सामने मिला होता तो पता चलता!
मर्दानगी तो कहाँ लेने जाना है? पेट पर लात मारी तब मर्दानगी दिखाई ही थी न? रमली का खून धसमस दौड़ने लगा। उसने देखा बुढ़िया कप-रकाबी धो रही थी: "रहने दो ना, मैं धो लूंगी। आपका क्या लूट रहा है?" उसने जग भर कर पानी पतीले में डाल दिया। एक जग अपने सिर पर डाल दिया। बुढ़िया वहाँ से हट गई। रमली के बर्तनों की पछडाहट से मानों जैसे घर में जान आई। रमली उकड़ूँ बैठी। पेट के टांके दुखने लगे। चौथा महीना था, शायद। लात मारते ही वह उल्टी गिर पड़ी थी। लाल चटक, मुट्ठी जितना आकार बना था। सफेद तश्तरी में नर्स ने दिखाया था। उठ कर हाथ में ले लिया होता, लेकिन डॉक्टर ने मना किया था। आँखों में आँसू आ गए थे।
- अगर वह आज होता तो छह महीने का हुआ होता। डॉक्टर ने चेतावनी देकर दूसरे के लिए साफ मना किया था। रमली ने पेट पर हाथ घुमाया। आँखों में पानी भर आया। बालों में से टपका हुआ पानी उसमें घुल गया। वह एकाएक खड़ी हुई। जी बार-बार खिड़की कि ओर खींचता जा रहा था।
- महल्ले के लड़कों को कुछ कह कर गया है? बुढ़िया ने पूछा।
- बैठी रहोना चुपचाप! पुलिस पीछे पड़ी थी इस वजह से भाग गया है। यात्रा पर थोड़ी न गया है जो सबको बताता फिरे। रमली ने गुस्सा उतारा
- शाम को उसके हिस्से का भी खाना बनाना!
- छोड कर गया है तुम्हारा बाप यहाँ पर? कहाँ से बनाऊं? ठेला लेकर गए सत्रह दिन हो गए है। तुम्हारा बेटा तो पत्थर मारने से ऊंचा आए तब न! कैसे करके सब संभाल रही हूँ, मेरा मन जानता है! बुढ़िया चुप हो गई। रमली के मन में भी दया उपजी: इसमें बेचारी बुढ़िया का क्या दोष? वह तो जन्म से ही ऐसा है।
पता नहीं कहाँ होगा? रात को पुलिस ने अंदर डाल दिया होगा या फिर वह क्या था... शूट-साइट?
- गोली लगी की वहीं पर खतम!
लोग बातें फैला रहे थे कि छबीला हनुमान के पास एक लड़के को गोली लगी थी। रावलगली तक वह दौड़ा। पता नहीं चला कि गोली लगी है। फिर जमीन पर पछड़ाया, फिर उठा ही नहीं। रमली काँप उठीं। घांटाघांट करती हुई पुलिस की गाड़ी आई। कनु भागता भागता घर के पास आकर ही गिर पड़ा, छाती में से खून निकल रहा। लोगों की टुकड़ियाँ और पुलिस की गाड़ियाँ....
रायपुर में, बीच चौक में, कनु का स्मारक! साथ में लिखित: पुलिस गोलीबारी में शहीद! कनु जयंतीलाल सथवारा, उम्र साल-पैंतीस, निवास-रंगाटी बाजार.....
रमली का पूरा शरीर पसीना पसीना हो गया। महल्ले में से एक बच्चे को बुलाकर पूछा: कनुकाका कहीं दिख रहे है?
जवाब मिले उससे पहले रमली उदास हो गई। काम करने में मन नहीं लगा। उसने डिब्बे में से चावल निकाले।
दो या तीन की दुविधा में....
फिर उसका भोजन भी अधिक, इसलिए चावल माप से ही डाल दिए। कहाँ जाएगा? जल्दी या देर से, आएगा ही न!
कनु का चेहरा नजरों के सामने घूमने लगा। बुढ़िया बैठे बैठे ही सो गई। रमली ने उसे हिलाया: बुढ़िया, वह आ तो जाएगा न? बोलते ही रमली गमगीन हो गई। अभी कनु दिखे तो उसके गले लगने को मन अधीरा हुआ। जब होता है तो, वो सहा नहीं जाता। जैसे चौबीस घंटे यहाँ वहाँ हो तो यह दिल भी जवाब दे देता है।
रमली को मानों जैसे हट्टा कट्टा कनु बाहों में लिपट गया। खुद सांस रुक जाए इतनी लिपट गई। कनु की पकड़ में उसे राहत मिली। जरा शरमाई। बुढ़िया उसे देखती रही। गली में आकर बच्चे खेलने लगे थे। कर्फ्यू खुल गया था। बारिश में मेंढक ऊभर आए उस प्रकार रास्ता इंसानों से उभर रहा था। इतने सारे लोग? थोड़ी देर पहले यह लोग थे कहाँ?
लोगो की भीड़ में उसकी आँखें कनु को ढूँढ रही थी। चावल प्राइमस पर चढ़ा कर रमली साँकल छोड़कर ठेला धोने के लिए बाल्टी और जग लेकर नीचे उतरी।
लोग थैलियाँ लेकर घबराएँ हुए भाग रहे थे। दो घंटे की छूट में लोग क्या इकट्ठा करेंगे? रमली को सब्जी से लदा हुआ ठेला और गली-गली जहाँ-जहाँ फिरती उन ग्राहकों के चेहरे याद आने लगे। क्या कर रहे होंगे सब?
कहीं और से सब्जी लेते होंगे? मुझें रोज याद करते होंगे? नानका टीनु तो रोज मांग कर ककड़ी लेने के बाद ही पीछा छोड़ते। उस नानका का चेहरा याद आया। रमली ने जग भर भर कर पूरा ठेला धो डाला। पाँच-सात घंटे की छूट मिले तो ठेला लेकर जा पाऊँ। दो पैसे मिले तो घर में जो कुछ चाहिए उसकी कमी पूरी हो सके। फिर घर में किस-किसकी कमी थी उसके विचार उसे परेशान करने लगे। इतने बड़े कनु की मानों जैसे कमी थी। बार-बार उसके विचारों से मन बेचैन होने लगा।
वही रंगाटी बाज़ार के नाके पर सिंदूरीया हनुमान के पास टोली में जोरों से आवाज़ होने लगी। उसने कान खड़े किये। चिंता होने लगी। अभी कर्फ्यू खुला कि वही ये सब जीने नहीं देते।
बुरके वाली एक औरत हनुमान मंदिर से कंधे में बच्चा लिए आ रही थी। पूरे सिधे रास्ते पर हर महल्ले के नाके पर लोगों की टोलियाँ थी। औरत थोड़ी आगे बढ़ी। टोली में से एक चिल्लाया। देखो, वह बुरके वाली जा रही है। टोली में शोरबकोर मच गया। कंधे पर बच्चा शांति से सो रहा था। घबराहट में औरत के कदम तेजी से चलने लगे। उसकी आँखें व्याकुलता से चारों ओर घूम रही थी।
टोली में से मारो, मारो की आवाज गूंजने लगी। फिर एकसाथ आवाज़ आने लगी मारो! मारो!
औरत अब भागने लगी। उसकी छाती धमन की तरह फूलने लगी। उसके शरीर में खून नहीं, बिजली दौड़ रही थी।
इतने में एक पत्थर घूमता हुआ औरत के सिर से टकराया। वह पूरी हलबला गई। बच्चा झटके से जग गया।
औरत ने बच्चे की पीठ थपथपाई। बच्चा फिर से कंधे पर सो गया। आस्टोडिया काजी के छत का रास्ता अभी लंबा था। औरत दौड़ने लगी। चप्पल फेंक दीए। बुरके में से होकर खून निकल रहा था। काले बुरके पर लाल धब्बे उभर आए। बच्चे को छाती से चिपका कर औरत फंसी हुई हिरनी की तरह भागने लगी। लोग पीछे शोरबकोर मचा रहे थे। पास के महल्ले के नाके से दूसरे लोग उसमें जुड़ते जा रहे थे। उतनी देर में दूसरा बड़ा पत्थर औरत के सिर पर आ टकराया। उसकी आँखों के सामने अंधेरा छा गया। पूरा आस्टोडिया गोल चक्कर खाने लगा। मस्जिद पर कबूतर उड़ते दिखाई दिये। उसने बच्चे को किसी शिकारी के पंजे से छुड़ा रही हो उस प्रकार जकड कर रखा। टोली चिचियाहट मचा रही थी। उसके सिर के खून की धारा गालों से होकर गले की ओर बढ़ रही थी।
यह हो रहा था तभी कहीं से कनु आया। वह औरत के कंधे पर से बच्चे को खींचने लगा। बचाव में औरत अपनी जान पर आ गई। टोली उन्माद कर रही थी। कनु ने धक्का मारकर औरत को गिरा दिया। बच्चा लेकर भागा। औरत जोर से चिल्लाई। टोली के शोर में चीख दब गई। पीछे पीछे औरत थी। औरत, बच्चा वापस दे देने के लिए कनु के आगे कराह रही थी। रमली भी पीछे दौड़ी। कनु छत की पारी पर चढ गया। औरत की आँखों से खून के आँसू बह रहे थे, "मेरा बच्चा दे दे, कमीने" औरत चिल्लाई।
रमली पल भर में सब कुछ समझ गई। रंगाटी बाज़ार का सीधा रास्ता लोगों से उभरने लगा। चैत्र की धूप अपना आखिरी प्रभाव दिखा रही थी। औरत दो हाथ जोड़े, रोते हुए खड़ी थी।
- कनु, तुम्हें मातारानी की कसम! बाई को उसका बच्चा दे दो! बच्चे ने तुम्हारा क्या बिगाड़ा है? रमली चिल्लाई।
- तुम्हें नहीं पता? पूरा डिब्बा जला दिया है? रमली, यह लोग क्या तुम्हारे सगे लगते हैं?
- सब खत्म हो गया। जाने दो अब। यह तो बच्चा है।
- रमली डिब्बे में बच्चे थे! उन बच्चों की माँ...
- सब भूल जाओ। तुम्हें मातारानी की कसम। बच्चा दे दो, कह रही हूँ।
औरत कोने में खड़ी खड़ी अभी भी कल्पांत कर रही थी। उसके हाथ अभी भी जुड़े हुए थे, काँप रहे थे। बिखरे हुए बाल और गाल पर उतरे हुए खून के कारण वह पागल जैसी लग रही थी।
कनु, तुम्हारा बच्चा कोई छीनकर भाग जाए तो? मुट्ठी जितना लाल आकर, सफेद तश्तरी में पड़ा हुआ, रमली की आँखों के सामने घूमने लगा। उसका हाथ अचानक से पेट पर घूमा। लट्टू की तरफ पेट में खून घूम रहा था। डूबते सूरज ने परछाई का खेल शुरू कर दिया था। लाल आकार अंदर अपने पैर धुसा रहा था।
बच्चे को खींचकर छाती से लगाने का रमली को मन हुआ। औरत की परछाई मूर्ति की तरह जड़ हो गई थी।
- कनु, मातारानी कभी माफ नहीं करेंगी!
- इन लोगों को कर देंगी, ऐसा? हटो यहाँ से, मेरा दिमाग मत खाओ।
कनु की लाल आँखें धूप में लबझब हो रही थी। औरत ने हाथ लंबे कर बच्चे को खिंचने का प्रयत्न किया कि तभी कनु ने उसे कचकचा कर पेट में लात मारी। औरत उल्टा गिर पड़ी। सामने रमली की चीक निकल गई।
- साला नीच, औरत को लात मारता है! - रमली ने कनु को खींचा लेकिन हट्टा कट्टा कनु, पारी पर से टस से मस नहीं हुआ।
औरत जमीन पर कराह रही थी। उँहकार में उसके होंठ थरथरा रहे थे। सिर का खून सफेद छत पर गिर रहा था। आँखें सूजकर गेंद जैसी हो गई थी।
रमली ने उछलकर कनु के पास से बच्चा खींचकर छाती से लगा लिया। इतनी जोर से दबाया कि बच्चा अचानक से जोर जोर से रोने लगा।
औरत की आँखें अर्ध खुली थी, उसके होंठ कांप उठे।
कनु ने रमली को खींचकर एक थप्पड़ जड दिया।,
- राँड़, बच्चा दे। पता नहीं है क्या, यह लोग बम रखकर एक साथ ही खत्म कर देते हैं! तुम्हें संत बनने का शौक जगा है?
- सब बात सही है, लेकिन मेरी नजरों के सामने इसे मरने नहीं दूँगी, उसके पेट में दोबारा हलचल हुई। बच्चे को रमली ने जोर से दबा लिया।
रमली ने सिंदूरीया हनुमान की ओर देखा। बच्चे को उछालकर हनुमानजी के कंधे पर धर दिया हो तो? हिम्मत है किसी में जो उनके पास से छीन ले!
रमली का पूरा बदन पसीना पसीना हो गया था। शरीर कांप रहा था। बच्चा चुप नहीं हो रहा था। औरत अभी भी रेत की तरह ढेर होकर पड़ी थी।
कनु की परछाई लंबी हुई। बाज झपट मारे उस प्रकार रमली को धक्का मार कर बच्चा छीन लिया।
रमली के दोनों हाथ खुल गए।
- राँड के बच्चे, मेरे बच्चे को तो मार डाला। इसको तो छोड़ दे।
रमली की आँखें आँसूओं से उभर रही थी। वह हवा में पंजे मारने लगी। चारो ओर सब गोल-गोल घूम रहा था। सिंदूरीया हनुमान, पथ्थर वाली मस्जिद, रंगाटी बाजार, नीचे टोली का शोर, सब गोल चक्कर खा रहे थे।
कनु पारी पर जाकर खड़ा था। बच्चा रो रो कर लाल लाल हो गया था। रमली के शरीर में बिजली दौड़ने लगी। उसने सारी ताकत मुट्ठी में बंद की, थोड़ा पीछे हटी। कनु को लगा कि रमली नीचे जा रही है। कनु ने बच्चे को हवा में उछालने का किया। नीचे टोली जिद पर अड़ी थी। शराब पिए हुए बंदर की तरह सब चिचियाहट कर रहे थे। रमली बिजली के चमकारे की तरह उड़ी। सीधा कनु के हाथ से बच्चा खींचकर कनु को धक्का मार दिया।
औरत एकाएक से बैठी हो गई। बुझती हुई बाती की तरह सूरज ने आखिरी धूप छत पर बिखेर दी। नीचे रंगाटी बाजार की भीड़ हाहाकार मचा रही थी। रमली सिंदूरीया हनुमान की ओर देखकर जोर से रो पड़ी।
नीचे उसके घर में पतीले में बनते चावल उभरकर बाहर गिर रहे थे।