Included in the UGC-CARE list (Group B Sr. No 172)

मनोव्यथा
(हार्दिक प्रजापति की मूल गुजराती कहानी 'त्रिभेटे' का हिंदी अनुवाद)

शादी का मंडप खचाखच भरा हुआ था। चारों तरफ जोर-शोर से शादी के गीत गाए जा रहे थे। कोई किसी की बात भी नहीं सुन पा रहा था। पंडित जी मंत्र पढ़ रहे थे और बीच-बीच में महिलाओं को दो हाथ जोड़कर शांति बनाए रखने के लिए निवेदन भी कर रहे थे। हर कोई अपने आनंद और मस्ती में डूबे हुए थे। हरेश दूल्हेराजा की पोशाक में सुंदर लग रहा था। माँ ने सुबह ही शादी के लिए तैयार हुए हरेश की नजर उतारी थी, कान के पीछे काला टीका किया वह भी दिखाई दे रहा था। हेत्वा के माता पिता ने कुछ समय पहले ही हेत्वा का हाथ हरेश के हाथ में रखकर कन्यादान की रसम पूरी की और उठ कर खुशी खुशी सब से मिल रहे थे। पंडित जी ने शादी की आगे की विधि के भागरूप दूल्हा दुल्हन को फेरों के लिए खड़े होने को कहा, हेत्वा तुरंत खड़ी हो गई। उसका शादी के प्रति उत्साह आंतर बाह्य व्यक्तित्व में लगातार प्रकट होता दिखाई दे रहा था। लेकिन बीच-बीच में हरेश विचारमग्न होकर उदास और गमगीन हो जाता था। मानों जैसे पुतला बनकर यह शादी कर रहा हो। कुछ समय पहले ही हवनकुंड लाया गया, उसमें अग्नि जलाई गई और रसमरिवाज अनुसार गीत शुरू हुआ। "सात फेरों के सातों वचन प्यारी दुल्हनीया भूल न जाना..." फोटोग्राफर हार्दिक ने दूल्हा दुल्हन को ठीक तरह से एक दूसरे का हाथ पकड़ने के लिए इशारों में समझाया। हेत्वा ने शीघ्र अपना हाथ हरेश को दिया। हरेश ने जैसे तैसे हेत्वा का हाथ पकड़ कर फेरे लेने शुरू किए। प्रथम फेरा पूर्ण हुआ, और दूसरा फेरा शुरू हुआ की तभी अचानक से पूरे मंडप में भूकंप सा लगा। हरेश ने अचानक से अपने कंधे पर का खेस जोर से खींच कर नीचे गिरा दिया और ऊंची आवाज में कहने लगा, "नहीं नहीं, मैं यह शादी नहीं कर पाऊंगा, मैं खुद से, हेत्वा से और... अन्याय नहीं कर पाऊंगा" यह शब्द सुनते ही पंडित जी स्तब्ध, फोटोग्राफर स्तब्ध, दूल्हा दुल्हन के माता-पिता स्तब्ध और पूरा मंडप स्तब्ध!!

हरेश की माँ हरेश के पास आई और बहुत प्यार से उसके सिर पर हाथ घुमाते हुए पूछा, "बेटा हरेश, क्या हुआ तुम्हें? इस समय ऐसा क्यों?" तब हरेश मानों जैसे सबसे माफी मांग रहा हो उस प्रकार रोते हुए और गंभीर आवाज में कहने लगा, "माँ, आपने तो आपके बेटे की शादी करवाने की खुशी में मेरा रिश्ता हेत्वा के साथ तय कर दिया, मेरे बारे में सोचा भी नहीं। आप तो जानते ही थे की मैं हेत्वा के साथ शादी करु उससे पहले ही मनोमन रवीना के साथ शादी कर चुका हूँ।

और हरेश के माता-पिता के सामने छह महीने पहले का भूतकाल तादृश हुआ। हाँ, बहुत अच्छे से याद है। छह महिने पहले की उस कलमुही रात को गाँव के मुखी और समाज के लोग अपने घर में उभर रहे थे। घर के कोने में या आंगन में मूंग या राई का दाना रखने की भी जगह नहीं थी। बात उस प्रकार थी की हरेश और रवीना बचपन से ही एक ही मुहल्ले में रहते हुए, साथ में बड़े होते हुए, साथ में पढ़ते हुए एक दूसरे के प्रति आकर्षित हुए थे। लेकिन किस्मत की कठिनाइ यह निकली की पहले यह मुहल्ला एक ही जाति या समुदाय का था। लेकिन धीरे-धीरे समाज बिखरने लगे और धंधा-व्यवसाय की अदलाबदली के कारण यह मुहल्ला अनेक जातियों का सहियारा बना था। हरेश और रवीना अलग-अलग जाति के होने के कारण हरेश का समाज या जाति के लोग यह संबंध स्वीकार करने को तैयार नहीं थे। लेकिन कोमल दिल, नादान दिल प्रेम करने से पहले नात जात के भेद को कहाँ परख पाता है? जो कहे जाने वाले ढोंगी समाज ने बनाया है।

दस दस साल की उम्र में ही जाने अनजान में हरेश और रवीना एक दूसरे को दिल दे चुके थे। और अब तो दोनों का एक दूसरे के बिना रहना भी मुश्किल हो गया था। लेकिन समाज उसका स्वीकार करने को तैयार न था। भविष्य की पीढ़ी पर इस प्रेम संबंध की कितनी बुरी असर पड़ेगी की 'ऐसा तो हमारे समाज में होता ही नहीं है' ऐसे निकृष्ट और खोखले नियम के अनुसार कहे जाने वाले समाज के बड़े लोगों ने अपनी माँ की आँखों के सामने हरेश को छह महीनों के लिए गाँव से निकाल कर आँखो के सामने से ओझल कर दिया और रवीना की आँखो के सामने से भी।

माँ तो आँसूओ को आँखो के कुएं में बहेलाये छह महीने गिनने लगी। लेकिन रवीना के लिए अब गाँव में रहना दुष्कर था और उससे भी ज्यादा दुष्कर था हरेश के बिना गाँव में रहना। उसके लिए गाँव की शाला, गाँव की गली और हर मोड़, गाँव का सिवान हरेश के पर्याय थे। इस वजह से वह हरेश की यादों को भूलने के लिए आगे की पढ़ाई का बहाना बनाकर गाँव छोड़कर अपने किसी रिश्तेदार के पास चली गई।

गाँव से निकाले हुए हरेश या रिश्तेदार के यहा ग‌ई हुई रवीना जितने दूर गए उतने ही पास आ गए। भौगोलिक दीवार या फिर दूरी की दीवारें दिल का अंतर कम न कर सकी। समाज को लगता था की दोनों दूर होंगे तो एक दूसरे को भूल जाएंगे लेकिन इस निष्ठुर समाज को या समाज की कहीं जाने वाली व्यवस्था को यह कहाँ से पता होगा की सारस बेलड़ी जैसा प्रेम एक झटके में दूर नहीं किया जा सकता।

धीरे-धीरे समय बित गया। छह महीने हवा की तरह गुजर गए और हरेश गाँव में वापस आया। घर के सब लोग खुश हुए और माता-पिता ने अब उसके हाथ पीले करने का तय किया। हरेश ने उस समय तो इच्छा अनिच्छा से हाँ कह दी और सगाई की मिठाई भी बांट दी और हरेश के माता-पिता ने जल्दी से सब निपटाया। शादी की पत्रिका भी बनवाई और गणेश स्थापना हुई। गाने-बाजे के साथ मंडप तक पहुँचा और अब हरेश हेत्वा का पति बनने जा रहा था।

मंडप में हर कोई गुपसुप करने लगा। कोई अच्छी तो कोई बुरी बाते कहने लगे। हेत्वा और उसके माता-पिता पर तो मानों जैसे आसमान टूट पड़ा हो। बेटी सौभाग्यवती होते ही... हेत्वा के पिता का संयम टूटा। बेटी की दु:खद स्थिति देखकर वह जोर से चिल्लाते हुए कहने लगे "हरेशकुमार, यह सब क्या लगा रखा है? कहने से पहले जरा तो सोचिए..." और हरेश के एकदम पास आकर उस पर हाथ उठाने गए की तभी हेत्वा बीच में आकर कहने लगी "बस पिताजी, मेरे नसीब में जो लिखा था वह हुआ, इसमें किसी और का दोष निकालना सही नहीं है।" और हरेश के सामने देखते हुए कहने लगी, "मुझे आपके ऊपर बहुत मान है, लेकिन यह मान दुगना होता अगर आपने यहाँ तक आने से पहले ही यह बहादुरी भरा निर्णय सुनाया होता।" यह सुनकर हरेश हेत्वा के हाथ में हाथ रखकर कहने लगा "हाँ हेत्वा, तुम्हारी बात सही है, मैंने बहुत देर कर दी, मैं त्रिभेट पर आ पहुँचा हुआ एक इंसान, एक तरफ समाज के बंधन, दूसरी तरफ जिसे सच्चा प्रेम किया है वह रवीना और तीसरी तरफ तुम। इस दुविधा में निर्णय लेने में मुझे बहुत देर हो गई, लेकिन आज मुझे जीवन की सही दिशा मिल गई है।

हरेश शर्मिंदा होकर नीचे की ओर देखता रहा। हेत्वा उसके पास आई। प्रेम से उसका हाथ पकड़ कर कहने लगी "हरेशभाई, निराश मत होना मैं आपके साथ हूँ। रवीना के साथ आपकी शादी करवा कर ही रहूँगी।' ऐसा कह कर उसने अपने कंधों पर का खेस घुमाकर धीरे से कहाँ "तुम्हारी शादी के वक्त में तुम्हारी बहन बनकर लूण बजाऊंगी... बनाओगे? उस वक्त मंडप को हवा का झोंका लगा और मंडप झुम उठा, साथ साथ युवान ह्रदय भी...!

('ત્રિભેટે' વાર્તા, લેખક- હાર્દિક પ્રજાપતિ, દલિતચેતના સામયિક: જાન્યુઆરી ૨૦૧૯)

अनुवादक

प्रजापति मेहुलकुमार सोमाभाई, स्नातकोत्तर, PGDSC
यादव आचलबेन विजयप्रताप, स्नातक, Mo.9537897795