गुजरात प्रांत में हिन्दी कवियों की हिन्दी वाणी
यूँ तो भारत वर्ष में हिन्दी भाषा के सन्दर्भ में कई मूर्धन्य कवियों ने अपनी वाणी व्यक्त की है | अपभ्रंश भाषा से प्रवाहित होनेवाला हिन्दी वाणी का प्रवाह निर्बाध रूप से हमारे देश के कौने-कौने में बहता हुआ नजर आया | हिन्दी के आरंभिक दौर में कवियों ने ब्रजभाषा,अवधि ,भोजपुरी जैसी बोलियों में अपनी वाणी व्यक्त की | आधुनिक युग की दहलीज तक आते आते भारतेन्दु हरिश्चन्द्र जैसे लेखकों की लेखनी ने खड़ीबोली को अपनी अभिव्यक्ति का माध्यम बनाया |
गुजरात प्रांतीय साहित्य भी इससे अछुता नहीं रहा है | यहाँ रहकर अपनी कर्मभूमि बनानेवाले अहिन्दी –भाषी कवियों एवं स्थानीय कवियों ने भी अपनी अनुभूतियों को हिन्दी वाणी से अभिव्यक्त किया | आज तो गुजरात में हिन्दी भाषा में काव्यलेखन करनेवाले कवियों का मानो ज्वार ही उभरकर सामने आया है |
गुजरात में हिन्दी कविता के क्षेत्र में हस्ताक्षर करनेवाले कवियों में भागवतप्रसाद मिश्र ‘नियाज’ का नाम अग्रिम रहा है | उतरप्रदेश के हमीरपुर के निवासी नियाजजी ने ‘कारा’नामक खंडकाव्य से अपनी साहित्यसाधना आरंभ की थी | गीतरश्मि, सुमनांजलि, जज्बात, तलाब, तरंगिणी, दीर्धा, आदि उनके काव्यसंग्रह हैं | उनकी कविताओं में सौन्दर्यबोध, राष्ट्रप्रेम, और अध्यात्मतत्व का स्वर मुखरित हुआ है | उनकी भगतसिंह नामक कविता देशोध्धार का नारा लगानेवाली कविता है |
“जिनकी आजानु भुजाओं में
अर्जुन का बल था, बोल रहा,
शंकर समान जिनमें कोई
था नेत्र तीसरा खोल रहा |”
अम्बाशंकर नागर एक ऐसा नाम, जिन्होंने गुजरात में हिन्दी भाषा की लौ को सुलगायी है | गुजरात विश्वविध्यालय में अध्यक्ष की भूमिका निभाते हुए उन्होंने हिन्दी की जो सेवा की है वह कालजयी है | चाँद-चांदनी और कैक्टस, प्रम्लोचा जैसे काव्यसंग्रहों में उनकी हिन्दी वाणी संग्रहित है |इसी सन्दर्भ में यह कथन द्रष्टव्य है-
“कवि के रूप में डॉ. नागर मर्ममधुर शब्द शिल्पी है | चित्रोपमता और संगीतात्मकता उनके काव्य की प्रधान विशेषता है | उन्होंने कम लिखा है, किन्तु जो लिखा है, ह्दय में कलम डुबोकर लिखा है |”
भगवतशरण अग्रवाल भी गुजरात के लब्ध प्रतिष्ठित कवि माने जाते है | फतहगंज की मिट्टी में पैदा होनेवाले अग्रवालजी एल. डी. आटर्स कोलेज के हिन्दी विभागाध्यक्ष रहे है | ‘शाश्वत क्षितिज’ से अपनी कविता का प्रारंभ करते हुए उन्होंने टुकड़े –टुकड़े आकाश, बस तुम ही तुम, खामोश हूँ मैं, प्यासी धरती खाली आकाश, अकह, मोड़ पर आदि रचनाओं का निर्माण किया है | जापानी हाइकू को हिन्दी में प्रषय देने का शौभाग्य इन्हें प्राप्त हुआ है |
कौन-सी करु
सुख की परिभाषा
सीता या राधा |
गुजरात के हिन्दी कवियों में सर्वाधित लोकप्रिय कवि किशोर काबरा का नाम रहा है | गजरात की केन्द्रीय विद्यालय में अध्यापन कार्य करनेवाले काबराजी ने ऋतुमती है प्यास, हाशिए की कविताएँ, मैं एक दर्पण हूँ, बूंद-बूंद कविताएँ, किशोर सतसई आदि काव्यसंग्रहों का निर्माण किया | उनकी कविताकला पर टिप्पणी करते हुए भगवानदास जैन का मानना है –
“काबराजी की काव्य-सुष्टि उनके व्यक्तित्व का स्वच्छ दर्पण है | उनके व्यक्तित्व की उल्लेखनीय एवं महत्वपूर्ण विशेषता यह है कि वे किसी दल, गुट, खेमे या वाद के मौहताज कभी नहीं रहे | वे प्रतिबद्ध रहे तो केवल मानव के प्रति |”
शायद इसलिए वह अपनी कविता में कहता है –
‘अच्छा तुम्हारा धर
अच्छे है तुम्हारे नागरिक,
एक बात बताओ दोस्त,
यह नागरिक ‘नाग’ से ही बना है न ? ’
गुजरात की हिन्दी कविता को सफल बनाने में रामकुमार गुप्त का योगदान भी सराहनीय रहा है | हिन्दी साहित्य परिषद के महामंत्री की भूमिका निभानेवाले गुप्तजी ने बिंदिया के बोल, क्षण का सौदागर, धुएँ का शहर, काव्यांजलि, नई धरती नया आकाश जैसे काव्यसंग्रह लिखे है | भावुकताप्रधान, ह्दय के भावों को झंकृत करनेवाली उनकी कविताओं में समकालीन परिस्थितियों की प्रामाणिक अभिव्यक्ति हुई है | इसी दिशा में डॉ. रमाकांत शर्मा का नाम भी शिरमोर्य रहा है | उगते शब्द, नवदीप, सबकी माटी, उगती सुबह आदि उनके काव्यसंग्रह है | पीड़ा, वेदना, विषमता, विसंगतियों आदि उनकी कविता की भावभूमि रही है | उनकी कविता में अंधकार को परास्त करने की क्षमता है | शापित काव्य में वे कहते है –
“मैं समय शापित फुल अंधकार का,
अपने प्रकाश को ढूंढ रहा,
सोयी आँखों में,
जो पी-पीकर बेसुधी सोयी है |”
गुजरात की भावधरा पर कविता लेखन करनेवाले कवियों में भगवानदास जैन का नाम भी सन्माननीय रहा है | रौशनी की तलाश, जिन्दा है आइना, कटधरे में आदि रचनाओं में उनकी अनुभूतियों को निर्भीक रूप में देखा जा सकता है | वे बेबाकी से लिखने में सिद्धहस्त कवि है | सर्वहारा वर्ग पे प्रति संवेदना व्यक्त करनेवाली उनकी कविताएँ पाठकों को अपनी ओर खींचती है | यथा:
“अपना वजूद टुकड़ों में शायद बिखर गया,
अब फूट करके फर्श पै बिखरा है आईना |”
इसी रह पर चलते हुए धनश्याम अग्रवाल ने भी युगांकन, सच तो यही है, शब्दयात्रा आदि काव्यसंग्रह लिखे हैं | राष्ट्रीयता, प्रकृति एवं मानवमन की गहराइयों में बैठकर उन्होंने कविताएँ लिखी है | ‘इन्सान को इन्सान से, बस प्यार केवल चाहिए’ कहनेवाले अग्रवालजी ने अपनी कविताओं में स्पष्ट कहा है-
“कहा से मटमैले गुब्बारे,
जैसे कुछ उदास चेहरे,
मुझको लगते है तेरे |”
गुजरात प्रदेश में हिन्दी काव्य को समृद्ध बनाने में सुल्तान अहमद ने भी अपनी लेखनी के हस्ताक्षर किये है | खामोशियों में बंद ज्वालामुखी, उठी हुई बाहों का समुन्द्र, दीवार के इधर-उधर, कलंकित होने से पूर्व आदि में उनकी वाणी व्यक्त हुई है | उनकी कविताओं का मुख्य स्वर मानवतावाद है | ‘मानव का बोम’ नामक कविता में उन्होंने स्पष्ट लिखा है-
“चाव अगर कम हो जाता है,
तो आदमी
आत्मधाती बम हो जाता है |”
उनकी कविताओं पर टिप्पणी करते हुए डॉ.हरियश राय ने स्पष्ट लिखा है-
“सुल्तान अहमद की कविताओं की खूबी यह है कि वे इस व्यवस्था पर, इससे शोषक स्वरूप पर, इनके द्वारा विकसित लूट की संस्कृति पर लगातार चोट करते है | पूरी मानवीयता के साथ |”
द्वारिकाप्रसाद सांचिहर ने भी रजनीगन्धा, अवाक् के चाक पर के द्वारा अपना योगदान दिया है | द्वारिकाप्रसाद मूलतः गीतकार है | वे प्रेम और सौन्दर्य के उपस्क रहे है | उन्मुक्तता, मौज-मस्ती और फक्कड़पन उनकी कविता में आद्यन्त विद्यमान है | जैसे;
“मैंने तो चाहा कि मन को विस्तार मिले,
क्षितिजों के कानों को स्वर्णिम अभिसार मिले,
कर बैठी अम्बर में किरणें क्यों दंगा |”
इस प्रकार समकालीन बोध को व्यक्त करनेवाली कविता का दौर आरंभ हुआ | इनमें श्री प्रकाश मिश्र कृत दीनू और कौवे, प्रेमपाल शर्मा कृत बच्चे, नरेंद्र चन्दर कृत साधारण आदमी, शैलेश पंडित मंगलपर्व, सुधा श्रीवास्तव कृत दंशों के धेरे में, कमल पूंजाणी कृत इंदु और बिंदु, डॉ अरविन्द जोशी कृत शेष है जो कहना है, बसंत कुमार परिहार कृत तलहटी के लोग, अविनाश श्रीवास्तव कृत परिद्रश्य, डॉ. सूर्यदीन यादव कृत हिन्द वाहिनी अदि उल्लेखनीय है |
निसंदेह सदियों से गुजरात प्रांत गौरवशाली प्रांत रहा है | इतिहास इस बात का प्रमाण है कि यहाँ युगों से देवताओं ने अपनी क्रमलीलाएँ की थी | यह प्रदेश औधोगिक द्रष्टि से सम्पन्न होने के साथ-साथ सांस्कृतिक द्रष्टि से भी अपनी पहेचान रखता है | यहाँ कि मातृभाषा गुजराती जो कर्णप्रिय भाषा है | इसी प्रांत में राष्ट्रभाषा हिन्दी का व्यापक रूप में प्रचलन है | साहित्य का क्षेत्र भी इससे अछूता नहीं है | इसी दिशा में अम्बाशंकर नागर, किशोर काबरा, सुल्तान अहमद, डॉ. सूर्यदीन यादव जैसे प्रतिभा सम्पन्न कवियों की हिन्दी वाणी व्यक्त हुई है |
संदर्भ सूचि :-
डॉ. भरत के. बावलिया, ASSISTANT PROFESSOR (Hindi), श्री आर. आर. लालन कोलेज भुज –कच्छ |