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राजेश जोशी की कविताओं में उत्तर आधुनिकता-बोध

उत्तर आधुनिकता शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग सन् 1920ई.के आसपास आर्नाल्ड टायनवी ने किया था।आल्विन टाफलर ने अपनी पुस्तक फ्यूचर –शॉक,दि थर्ड वेब और पॉवर शिफ्ट में उत्तरआधुनिकतावाद की विवेचना की है।मार्शल मैकलुहान की पुस्तक द मीडिया इज द मैसेज में उत्तराधुनिकता को सूचना-प्रौद्योगिकी के विकास के रूप में दिखाया।पश्चिमी विद्वान फ्रेडरिक जेमेसन ने उत्तरआधुनिकता को वृहत् पूँजीवाद का सांस्कृतिक तर्क कहा तो ल्योतार उत्तराधुनिकता को आधुनिकता से जोडते हैं तथा उसी का विस्तार मानते हैं।ल्योतार ने अपनी पुस्तक द पोस्ट मार्डन में कहा है कि अब बीसवीं शताब्दी के अन्त में एक नया सृजनात्मक युग होगा और इसका आरंभ सन् 1938ई. में पेरिस के छात्रों के विद्रोह में मिलता है,जिसमें कहा गया है कि युवकों को मिलने जुलने की आज़ादी हो।किन्तु सच्चाई यह है कि उत्तराधुनिकतावाद की कोई समग्रतावादी परिभाषा नहीं है। वसुधैवकुटुम्बकम्,लोकाःसमस्ताःसुखिनोभवन्तु जैसे दर्शनों पर आस्था रखनेवाली भारतीय संस्कृति पूरे विश्व के लिए आदर्श रही हैं। लेकिन इस उत्तराधुनिक समय में कहीं न कहीं भारतीय संस्कृति रूपी चाँद पर पश्चिमी अपसंस्कृति का कलंक लगा है।भारत विविधताओं का देश है।यहाँ विभिन्न जाति के लोग ,विभिन्न धर्म के लोग आपस में प्रेम-भाव से रहते थे।वहाँ आजकल जाति के नाम पर,धर्म के नाम पर,रंग के नाम पर लोग एक-दूजे के खून के प्यासे हैं।ऐसे में साहित्यकार का धर्म है कि समाज में रहनेवालों को समाज की सच्चाई का बोध कराएँ। साहित्यकार समय की भीषणताओं से उत्पन्न खतरों के मुकाबले करने के लिए जनता को आगाह करते हैं।राजेश जोशी एक प्रतिबद्ध साहित्यकार के रूप में समकालीन काव्य क्षेत्र में उभरा था। उनका जन्म मध्यप्रदेश के नरसिंहगढ़ जिले में हुआ।उनके प्रमुख काव्य-संग्रह हैं-एक दिन बोलेंगे पेड,मिट्ठी का चेहरा,नेपथ्य में हँसी,दो पंक्तियों के बीच,चाँद की वर्तनी।उन्हें शमशेर सम्मान,पहल सम्मान,मध्यप्रदेश सरकार का शिखर सम्मान और माखनलाल चतुर्वेदी पुरस्कार के साथ केन्द्र साहित्य अकादमी के प्रतिष्ठित सम्मान से सम्मानित किया गया है।राजेश जोशी के लिए कविता जिन्दगी की ओर मुडने की प्रेरणा है।कवि चाहते हैं कि कविता में अपनी आत्मा को पूर्णिमा के पूरे चाँद की तरह दिखे।कवि ने अपनी कविता प्रजापति के द्वारा जनता में एक नयी उम्मीद जगाये हैं-
बदल जायें,बदल जायें लोगों के चेहरे
जब वे मेरी कविता में आएँ
हीरे की तरह चमकती हुई दिखें लोगों की
बहुत छोटी छोटी अच्छाइयाँ
कि आत्महत्या करता आदमी पलट कर दौड पडे
जीवन की ओर चिल्लाता हुआ। (1)

यहाँ राजेश जोशी एक जनकवि के रूप में प्रकट होता है।मानव की छोटी-छोटी अच्छाईयाँ कवि के लिए उम्मीद की किरण है।कवि राजेश जोशी ने अपनी कविता जन्म में इस बात पर ज़ोर दिया है कि छोटी-छोटी खुशियों को गँवाना नहीं चाहिए।
वो छोटी सी काली हंडिया जिसमें पकाई जाती है
और रख ली जाती है जीवन की छोटी छोटी खुशियाँ
पुराने अखबार का वो कोई छोटा सा टुकडा
जिसमें बाँधकर रखा जाता है नमक
इतने सहेज कर रखती है वह बंजारन औरत नमक को
कागज़ में बाँध लिया हो जैसे उसने पूरा अरब सागर (2)

बूँद-बूँद से घडा भरता है,वैसे ही छोटी-छोटी खुशियाँ मानव-हृदय को शान्त कर सकती हैं।क्योंकि कवि जानते हैं कि समय गतिशील है।उसमें तेज़ी से खुशियों को गायब करने की क्षमता है।तब खुशियों की जगह ऊब फफूँद की तरह उग आने की संभावना है।

द्वितीय विश्व युद्ध में लाखों लोग मारे गये।हिरोशिमा,नागसाकी पर अमेरिका ने अणुबम गिराया। अणुबम पूरे मानवराशी के लिए खतरनाक है। आज तक हिरोशिमा,नागसाकी की जनता,पृथ्वी,पशु-पक्षियाँ आदि विज्ञान-प्रौद्योगिकी के बुरे प्रभाव से मुक्त नहीं हो पाये हैं। नट कविता की निम्नपंक्तियाँ द्रष्टव्य हैं-
युद्ध में बार-बार घाव पर घाव सहते
क्या कम जर्जर हुई है यह पृथ्वी (3)
राजेश जोशी की कविताएँ मानवीयता के प्रति गहरी आस्था दिखानेवाली,प्रेम जगानेवाली और प्रकृति को माँ की तरह माननेवाली हैं।

कवि राजेश जोशी की कविताएँ मेरठ 87 और दिल्ली 88 साम्प्रदायिक दंगों के कारण अपने जगह से पलायन किये लोगों के जीवन का दस्तावेज़ है।
जब जब किसी स्टेशन पर रुकती है रेलगाड़ी
खिड़कियों से झरती है आवाज़ें और
कौधती हैं बत्तियाँ
खिड़की से दूर बैठा बूढा पूछता है
खिड़की के पास बैठे लड़के से
कौन सा टेशन है भैया
खिड़की से बाहर झाँकता है लड़का
पढ़ता है स्टेशन का बोर्ड
कहता है-
मेरठ। (4)

लोग मेरठ से भागते हैं।हत्यारों की मनमानी,लूट-खसोट,हत्या-खून के बीच रहनेवालों के मन में असुरक्षा के भाव उत्पन्न हो गये हैं।इस असुरक्षा के माहौल को कवि ने शब्दबद्ध किया है।

राजनीति में प्रजातंत्र नहीं गुण्डागर्दी चलती है।व्यवस्था के विरुद्ध लड़नेवाले हत्यारों से मारे जाते हैं।ऐसे माहौल में लोगों के बीच भय,संत्रास,घुटन फैल गए हैं।इस सच्चाई को कवि ने अपनी कविता घृणा के बारे में कुछ शब्द में यों व्यक्त किया है।
विरोध करनेवालों में से हत्यारे किसी एक को चुनते हैं
और मार डालते हैं उसे सरेआम
सोचते हैं हत्यारे,इस तरह घृणा को बदला जा सकता है
भय में ,हमेशा के लिए (5)

समय के विकट परिस्थितियाँ तब पाठकों के सामने आता है जब कवि कहते हैं-
सबसे बडा अपराध है इस समय
निहत्थे और निरपराध होना
जो अपराधी नहीं होंगे मारे जायेंगे। (6)

आज न्याय पूँजीपतियों के लिए रह गए हैं।जिसके पास धन है वह न्याय को खरीद सकता है।शासक,पुलिस और न्यायाधीश सब लोग एक ही धागे में पिरोये जाते हैं।कवि ने अपनी कविता न्याय के माध्यम से शासन व्यवस्था के खोखलेपन को उकेरा है।
बची है अदालत के फर्श पर
उस धूल में किसी की जेब से गिरा
एक सिक्का चमक रहा है। (7)

कवि बच्चों के प्रति संवेदनशील है।कवि ने बच्चों को भी अपनी कविता में स्थान दिया है।बच्चे काम पर जा रहे हैं में बन्धुआ मज़दूरों की समस्या पर प्रकाश डाला गया है।
बच्चे काम पर जा रहे हैं
हमारे समय की सबसे भयानक पंक्ति है यह
भयानक है इसे विवरण की तरह लिखा जाना
लिखा जाना चाहिए इसे सवाल की तरह (8)

बचपन बच्चों के खेलना –कूदने और पढने-लिखने का वक्त है।हमारे संविधान ने बालश्रम पर रोक लगायी है। फिर भी उत्तराधुनिकता के इस भीषण समय में बच्चों के साथ अन्याय हो रहे हैं।यहाँ कवि ने व्यवस्था के खोखलेपन को दर्शाया है।

उत्तराधुनिक समाज में हाशियेकृत वर्गों को अपनी ज़मीन से बेदखल किये जा रहे हैं।ऐसे में भी कवि राजेश जोशी ने अपनी कलम चलायी हैं। वे सदियों से चुपचाप रहनेवालों की महत्ता को वाणी देते हैं।
वे जो बचाते हैं
आग को पानी को हवा को आकाश को
धरती को बचाते हैं बंजर होने से
हमारी भाषा में जो नहीं घेरे
अपने नाम जितनी भी जगह
वे अक्सर जिन्दगी के हाशिए पर रह लेते हैं
अनाम और चुपचाप (9)

कवि जानते हैं कि वैश्वीकृत समाज में आदिवासी,दलित,स्त्री,मज़दूर और कृषक आदि हाशियेकृत समाज के लोगों को भी स्थान प्राप्त है।कवि के हृदय में न कोई छोटा है,न कोई बड़ा है।सभी लोग प्रेम,समता,इन्सानियत का पात्र है।आगे की पंक्तियों में राजेश जोशी लिखते हैं-
वे जो इस धरती के नमक है
चाहिये बस उतनी ही जगह
जितनी
चाँद का अक्स घेरता है पानी में (10)

राजेश जोशी ने एक लड़की से बातचीत कविता में लड़की के मन को उकेरा है-
जानते हो ,लड़की ने कहा एक सुनार से गहने गढवाने के लिए
परियों ने अपने उडनेवाले जूते गिरवी रख दिए हैं और
तितलियों ने फूलों के रस के लिए अपने पंख बेच डाले हैं।
मैं सिर्फ दूसरों के सपनों में भटक रही हूँ। (11)

प्रस्तुत पंक्तियों में एक स्त्री के दर्द की आहट प्राप्त होती है।स्त्री अपने समाज में स्वतंत्र पहचान चाहती है।अपने सपनों की उडान चाहती है।उसे गहने नहीं बल्कि उड़नेवाले जूते और पंख चाहिए,ताकि वह उड़ पाएँ।

उपभोग संस्कृति के प्रभाव से प्रकृति-मानव के रिश्ते बिगड़ रहे हैं।पुराने ज़माने में मानव शिद्दत के साथ पेड़ों की पूजा किया करते थे।परन्तु आज मानव पेडों को काटकर उसी जगह अट्टालिकाएँ बना रहे हैं।कवि की कविता आठ लफंगों और पागल औरत का गीत की पंक्तियाँ हैं-
यहाँ वृक्ष काटे जा रहे हैं लगातार (12)

नदी,पेड़-पौधे,स्त्री,आदिवासी,दलित,कृषक,मज़दूर आदि सभी सदी के सबसे कठिन समय से गुजर रहे हैं।कवि जानते हैं-
यह शेयर बाज़ार के दलालों का समय है।
धुएँ को चाहिए आग का घर,मछलियों को पानी
किसी ने किसी के आश्रय में ही रह सकती है छायाएँ
नदियों का नहीं समुद्रों का नहीं पेड़ पहाड़ों का नहीं
बाज़ारों का है यह समय। (13)

वैश्वीकरण के दौर में मानवीय रिश्ते कमज़ोर धागे की भाँति टूट रहे हैं।संयुक्त परिवार विघटित होकर अणुपरिवार में तब्दील हुआ।वर्तमान काल में मानव-सम्बन्धों में प्यार,विश्वास और समर्पण की भावना निहित नहीं है।राजेश जोशी की कविता संयुक्त परिवार की निम्न पंक्तियाँ हैं।
सुख –दुःख में भी पहले की तरह इकट्ठे नहीं होते लोग
सब बेचैन भाग रहे हैं-
बाज़ार ने पड़ोसी तक को अजनबी बना दिया है। (14)

महानगर में बसनेवाले या फिर कहें, एक ही मकान में रहनेवाले एक दूसरे के अजनबी हो गये हैं।बाज़ारी दृष्टि उनके रिश्तों पर हावी हो चली है।उत्तराधुनिक दौर में बाज़ार में रिश्तेदारी नहीं दूकानदारी चलती है।

सूचना-संचार क्रांति के फलस्वरूप टी.वी,इन्टरनेट के उपयोग में तीव्र गति आयी है। टी.वी में दिखाये जानेवाले विज्ञापनों के माध्यम से विदेशी कंपनियों के प्रोडक्टों के बारे में घर बैठे-बैठे ही आम आदमी जानकारी प्राप्त कर लेते हैं।इससे लोग प्रभावित होकर जाँच-पड़ताल किये बिना चीज़ों को मुक्त बाज़ार से खरीदते हैं।चीज़ों की चकाचौंध में आकर आम आदमी अपनी हैसियत से बढ़कर कर्ज करते हैं।इसलिए कवि ने बाज़ार के चीज़ों को स्वतंत्र सत्ता माना है।बाज़ार में व्यक्ति के भाग्य को सुनिश्चित करने का अधिकार चीज़ों को प्राप्त है।इस सच्चाई की ओर कवि राजेश जोशी ने पाठकों का ध्यान खींचा है।
चीज़ें एक दिन इतनी ताकतवर हो जाती है
कि बनाती जाती है उनकी स्वतंत्र सत्ता
तब आदमी नहीं,चीज़ें तय करने लगती है
आदमी का भाग्य (15)

उत्तराधुनिक समय की विशेषता है कि व्यक्ति की स्वतंत्र सत्ता खत्म हो चुका है।चीज़ों ने व्यक्ति की स्वतंत्र सत्ता पर कब्जा जमाया है।अर्थात् बाज़ार एक स्वतंत्र सत्ता के रूप में उभरकर आया है। इसलिए कवि इक्कीसवीं शताब्दी की ओर छलांक मारना चाहते हैं।
मैं अब रुक नहीं सकता
इस सदी में अब मेरी रत्ती भर भी दिलचस्पी नहीं
रत्ती भर भी दिलचस्पी नहीं अब मेरी
अपनी जडों में,अपने इतिहास में (16)

कवि ने उत्तराधुनिक समय की यथार्थता को स्पष्ट किया है। इतिहास का अन्त हो चुका है।पिछले कुछ शताब्दियों से सामंती,साम्राज्यवादी शक्तियाँ साधारण जनता पर अत्याचार करती थीं लेकिन उदारीकरण,वैश्वीकरण के वर्तमान दौर में विकसित देशों के बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ विकासशील देशों की जनता पर शोषण कर रहे हैं।स्वचालित मशीनों ने मानव श्रम को सस्ते में कर दिया है। आयातित टेक्नोलॉजी के कारण बेरोजगार हुए देश के नागरिकों पर कवि ने कविता लिखी है ।
जानता हुँ जानता हूँ
वहाँ ज्यादा कहीं होगी आदमियों की ज़रूरत
वहाँ जगह ही कहाँ होगी हमारे हिलने डुलने को
आयातित टेक्नोलॉजी घेर चुकी होगी
सारी जगह (17)

बाज़ारवाद के ज़माने में देश में नवउपनिवेशी शक्तियाँ पैर पसार चुकी हैं। कवि पाठकों से यह कहना चाहते हैं कि उत्तराधुनिक समय में हमें रास्ते में विभिन्न सोच रखनेवाले मिलेंगे,फिर भी प्यार से मिलजुलकर उन्हें काम करना चाहिए।भाषा के,धर्म के नाम पर हमें तंग करनेवाले भी मिलेंगे,लेकिन हमें अपने आन्तरिक नैतिक मूल्यों को खोना नहीं चाहिए।
कोई गुजरे हमारे आसमान से
कोई गुजरे हमारे बगल के समुद्र से,नदी से
लगेगा उसे
बाकी है,बाकी है आशा अभी
हृमारे घरों में हँसी। (18)

संक्षेप में,कवि राजेश जोशी एक संवेदनशील और समाज को उन्नति तक पहुँचाने में कटिबद्ध साहित्यकार के रूप में हिन्दी जगत में अपना स्थान पा लिया है।अपने समय की विद्रूपताओं को सुबोधमय भाषा में पाठकों तक पहुँचाने में कवि को सफलता मिली है।कवि के समय भारत में साम्प्रदायिक दंगे ,हत्या,गुण्डागर्दी,भ्रष्ट शासन व्यवस्था,उदारीकरण,निजीकरण,बाज़ारवाद आदि गतिशील हैं।सूचना क्रांति ने मानव जीवन में हडकंप मचा दिया है।कवि ने बाल मज़दूर,कृषक,आदिवासी,प्रकृति,स्त्री आदि की समस्याओं और संवेदनाओं पर कविताएँ लिखी हैं। उत्तर आधुनिक समय ,समाज और लोगों की नब्ज को पकड़ने में कवि सफल हुए हैं।

संदर्भ:::

  1. राजेश जोशी,नेपथ्य में हँसी,राजकमल प्रकाशन,प्रथम संस्करण 1994,पृ.27-28
  2. रवही, 1994,पृ.9
  3. रवही, 1994,पृ.13
  4. रवही, 1994,पृ.41
  5. रवही, 1994,पृ.33
  6. वही, 1994,पृ.35
  7. रवही, 1994,पृ.66
  8. वही, 1994,पृ.23
  9. वही, 1994,पृ.21-22
  10. वही, पृ.22
  11. वही, पृ.72
  12. वही, पृ.77
  13. वही, पृ.77
  14. वही, पृ.55
  15. वही, पृ.60
  16. वही, पृ.47
  17. वही, पृ.47
  18. वही, पृ.15-16

अन्जु.जे.ए., शोध छात्रा,हिन्दी विभाग, केरल विश्वविद्यालय